अन्ना हजारे का आह्वान
हर तरफ आग है
पर ना जाने क्यों
मन ठंडा है
चिंगारी जो सुलगती थी
राख हुई जाती है
यूं तो कहते थे कि
इन्कलाब कोई लायेगे
आज वक्त की मांग है
आवाज़ घुटी जाती है
यूं तो चल दिए हज़ारों मील कई
आज चलने की आगाज़ है
चाल मंद हुई जाती है
हर बार बने शिकार तो
कोसते थे भ्रष्टता को
आज ख़त्म करने की बात है
जान पस्त हुई जाती है
नहीं हासिल होता कुछ भी
महज़ ख्वाबो से, ख्यालो से
आओ जुटे हम सब
इसी आन्दोलन में
एक बूढी , सशक्त गुहार
इतिहास की धूल में
गर्क हुई जाती है