शनिवार, 20 अगस्त 2011

अन्ना हजारे का आह्वान

अन्ना हजारे का आह्वान 

हर तरफ आग है 
पर ना जाने क्यों 
 मन ठंडा है 
चिंगारी जो सुलगती थी 
राख  हुई जाती है 
यूं तो कहते थे कि
इन्कलाब कोई लायेगे 
आज वक्त की मांग है 
आवाज़ घुटी जाती है 
यूं तो चल दिए हज़ारों मील कई 
आज चलने की आगाज़ है 
चाल मंद हुई जाती है 
हर बार बने शिकार तो 
कोसते थे भ्रष्टता  को 
आज ख़त्म करने की बात है 
जान पस्त हुई जाती है 
नहीं हासिल  होता कुछ भी 
महज़ ख्वाबो से, ख्यालो से 
आओ जुटे हम सब 
इसी आन्दोलन में 
एक बूढी , सशक्त गुहार 
इतिहास  की धूल में 
गर्क  हुई जाती है