वंदना
अनजाना पथ था
सघन तिमिर था
एकाकी था
ना हमसफ़र था
थका थका सा
रुका रुका सा
ढूँढ रहा था
मंजिल अपनी
हिम्मत थी
टूटी जाती थी
साहस था
दम तोड़ चुका था
आशा का दामन
छोड़ चुका था
भूल के अपनी
संचित निधि को
गहन निराशा को
रुख मोड़ चुका था
उच्श्रीन्ख्लता रो रो कर
अमिट छाप तब
छोड़ चुकी थी
हुआ आगमन
चन्द्र किरण का
चहुँ फ़ैल गया
उज्जवल उजियारा
सत्वर किरने
रजत वरण सी
चीरती जाती
कटुतम अंधियारा
उत्तर दिशी से
बन कर उतरे
देवदूत से
धवल सुधाकर
नीरज के कोमल
अधरों पर
मुस्काये और फैल गये
बन कर कुसुमाकर
हरियाली अब
चहुँ और थी
आशा की फैली
चादर में
साहस के मोती
झरते थे
प्रशस्त मार्ग को
रौशन करते
जगमग दीप
जला करते थे
धन्यवाद, हे सुकुमार !
मेरा ,तुझ को
किये समर्पित
हृदय दीप
शत शत नमन
करूं तुझको
'
अनजाना पथ था
सघन तिमिर था
एकाकी था
ना हमसफ़र था
थका थका सा
रुका रुका सा
ढूँढ रहा था
मंजिल अपनी
हिम्मत थी
टूटी जाती थी
साहस था
दम तोड़ चुका था
आशा का दामन
छोड़ चुका था
भूल के अपनी
संचित निधि को
गहन निराशा को
रुख मोड़ चुका था
उच्श्रीन्ख्लता रो रो कर
अमिट छाप तब
छोड़ चुकी थी
हुआ आगमन
चन्द्र किरण का
चहुँ फ़ैल गया
उज्जवल उजियारा
सत्वर किरने
रजत वरण सी
चीरती जाती
कटुतम अंधियारा
उत्तर दिशी से
बन कर उतरे
देवदूत से
धवल सुधाकर
नीरज के कोमल
अधरों पर
मुस्काये और फैल गये
बन कर कुसुमाकर
हरियाली अब
चहुँ और थी
आशा की फैली
चादर में
साहस के मोती
झरते थे
प्रशस्त मार्ग को
रौशन करते
जगमग दीप
जला करते थे
धन्यवाद, हे सुकुमार !
मेरा ,तुझ को
किये समर्पित
हृदय दीप
शत शत नमन
करूं तुझको
'