शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

Tees!!


टीस!
उठती है यूं टीसे दिल में 
जैसे लहरे हो सागर में 
मिटती एक तो बनती दो है 
हलचल करती जीवन तल में 
दिल ही इनका उद्गम स्रोता
दिल ही  इनमे भीग के रोता  
दिल ही इनके संग जागता 
दिल ही   इन में घुस कर सोता 
टीस की टीस पे टीस उठे जब 
अनहत  नाद भी होते मुखरित 
टीसों की तब घंतावलियाँ 
टन-टन टन- टन बज उठती हैं 
मन मब्दिर के एक कोने में 
देवासन सा पा जाती हैं 
अश्रु पुष्प चढाता मन है 
गर्म श्वास से अर्चन करता 
रीते रीते खुले नेत्र से 
इन टीसों का दर्शन करता 
टीस उठे तो जीवन रोता
टीस दबे  तो हर्षित होता 
टीस जगे तो चेतन होता 
टीस मिटे तो बेकल होता