रविवार, 21 अगस्त 2011

Karm Rekha


कर्म रेखा 

प्रयत्न करते हैं 
जब भी 
पढने की
रेखाए हाथो की 
एक चित्र  
उभर आता है 
दूर कही वादियों में
मन का हारिल 
गाता है 
 आस का पंछी 
उड़ते उड़ते 
बीच भंवर में 
डूब जाता है 
वक़्त से पहले 
और वक़्त के बाद 
मिलने का भेद 
समझ में 
आ जाता है 
दूर चिमनी से
उठता धुयाँ 
आसमान में विलीन 
हो जाता है 
नभ पर बनते 
काले बादल 
जल के नहीं 
धुएं के है 
जो बनते है , मिटते हैं 
पर  वृष्टि नहीं करते है 
तब फिर प्रयत्न करते है 
छोटा करने की 
अपनी भाग्य रेखा 
करके लम्बी कर्म रेखा 
सुनिशित है सब कुछ
मगर बस  एक रेखा 
छिप गया सब सार जिसमे 
और वोह है 
कर्म रेखा .........