हिमालय से
उज्जवल धवल हिमानी मंडित
मुकुट सुशोभित माँ के शीश
सजग प्रहरी उत्तर दिशि के
देता नित पावन आशीष
उन्नत हिमगिरी से आच्छादित
नव चुम्बन के लिए खड़े
शस्य श्यामला भू किरीट में
मानो हीरक रत्न जड़े
नित्य प्रात: के प्रथम प्रहर में
विदू किरणों की बह धारा
रूप निखारे नित्य स्नान से
धोकर मानो मल सारा
ज्योति जलाने आता सूरज
उछेइश्रव रथ पर आरूड़
कण-कण में भरता उजियाला
करता तिमिर गहनतम दूर
त्रिविद ताप हारी मालिय मिल
गायन नृत्य विहार करे
और देवयानी प्रकृति की
आँगन में अभिसार करे
विविध वरण के पुष्प
और तरु वसन सजे हरियाली के
कंठ सुशोबित गंग माल से
और वक्ष भाग सु वनाली से
पद्मराग मणि मरकत से
भरपूर संपदा का दाता
पूज्य हिमालय अचल अडिग है
सदा हमारा परित्राता
अतुल संपदा है आँचल में
मेघों से करता किल्लोल
सरिताए सर सरित बहाता
लेकिन रहता स्वयं अडोल
उपकृत तुमसे करते विनती
सुरस्वामी हरिराया से
अभिलाषा है हम रहे ना वंचित
सुखद तुम्हारी छाया से
उज्जवल धवल हिमानी मंडित
मुकुट सुशोभित माँ के शीश
सजग प्रहरी उत्तर दिशि के
देता नित पावन आशीष
उन्नत हिमगिरी से आच्छादित
नव चुम्बन के लिए खड़े
शस्य श्यामला भू किरीट में
मानो हीरक रत्न जड़े
नित्य प्रात: के प्रथम प्रहर में
विदू किरणों की बह धारा
रूप निखारे नित्य स्नान से
धोकर मानो मल सारा
ज्योति जलाने आता सूरज
उछेइश्रव रथ पर आरूड़
कण-कण में भरता उजियाला
करता तिमिर गहनतम दूर
त्रिविद ताप हारी मालिय मिल
गायन नृत्य विहार करे
और देवयानी प्रकृति की
आँगन में अभिसार करे
विविध वरण के पुष्प
और तरु वसन सजे हरियाली के
कंठ सुशोबित गंग माल से
और वक्ष भाग सु वनाली से
पद्मराग मणि मरकत से
भरपूर संपदा का दाता
पूज्य हिमालय अचल अडिग है
सदा हमारा परित्राता
अतुल संपदा है आँचल में
मेघों से करता किल्लोल
सरिताए सर सरित बहाता
लेकिन रहता स्वयं अडोल
उपकृत तुमसे करते विनती
सुरस्वामी हरिराया से
अभिलाषा है हम रहे ना वंचित
सुखद तुम्हारी छाया से