गुरुवार, 25 अगस्त 2011

Himaalye se

हिमालय से
उज्जवल धवल हिमानी मंडित
मुकुट सुशोभित माँ के शीश
सजग प्रहरी उत्तर दिशि के
देता नित  पावन आशीष
उन्नत हिमगिरी से आच्छादित
नव चुम्बन के लिए खड़े
शस्य श्यामला भू किरीट में
मानो हीरक रत्न जड़े
नित्य प्रात: के प्रथम प्रहर में
विदू किरणों की बह धारा
रूप निखारे नित्य स्नान से
धोकर मानो मल सारा
ज्योति जलाने आता सूरज
उछेइश्रव रथ पर आरूड़
कण-कण में भरता उजियाला
करता तिमिर गहनतम दूर
त्रिविद ताप हारी मालिय मिल
गायन नृत्य विहार करे
और देवयानी प्रकृति की
आँगन में अभिसार करे
विविध वरण के पुष्प
और तरु वसन सजे हरियाली के
कंठ सुशोबित गंग माल से
और वक्ष भाग सु वनाली से
पद्मराग मणि मरकत से
भरपूर संपदा का दाता
पूज्य हिमालय अचल अडिग है
सदा हमारा परित्राता
अतुल संपदा है आँचल में
मेघों से करता किल्लोल
सरिताए सर सरित बहाता
लेकिन रहता स्वयं अडोल
उपकृत तुमसे करते विनती
सुरस्वामी हरिराया से
अभिलाषा है हम रहे ना वंचित
सुखद तुम्हारी छाया से