शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

yh shahar

यह शहर
एक भयावह चीख
गूंजती है वीथियों से
सुनायी नहीं देती
शहर के लोग बहरे हैं
एक बुलंद आवाज़
उठती है बार बार
बोल नहीं पाती
शहर के लोग गूंगे है
दौड़ता है अपने
इरादों  के साथ
मगर चल नहीं पाता है
शहर  के लोग पंगु है
बुनता है ख्वाब कई
सुनंहले रुपहले
देख नहीं पाता है
शहर के लोग अंधे है
भरता है श्वास कई
ऊँची उड़ान भरने को
उड़ नहीं पाता है
शहर के लोग पंखहीन है
क्यों निवास करता है ?
ऐसे शहर में वह
जीवन कुछ गतिहीन सा
और लोग जहां मुर्दा है