शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

Kambakht Dil


 कमबख्त दिल!

कमबख्त दिल ही तो नहीं है !
बस एक  मांस का लोथड है 
लब-ढब,लब-ढब करता है 
बस केवल साँसे गिनता है 
ना पीड़ा में पिघलता है 
ना हर्ष में उछलता है 
ना करता है  एहसास कभी 
बस स्वार्थ की आग में जलता है 
मेरी साँसों में मेरा जीवन 
इन  साँसों में एक बासी पन 
झूठ की चादर ओढ़े बैठा 
मानवता को निगलता है 
कमबख्त दिल ही तो नहीं है 
बस एक मांस का लोथड है 

कब धड़का कुछ याद नहीं है 
कब मचला कुछ पता नहीं है 
यंत्र सा चालित हर पल हर क्षण 
कब दहका कुछ ज्ञान नहीं है 
वज्र सा लगता कभी मुझे यह 
नाजुक फूल सा झट झर जाता 
अपना रीना रोता रहता 
पर पीड़ा से मुकुर सा जाता 
तेरा मेरा इसका उसका 
जीवन यापन हो जाता है 
दिल का ढब ही तो बेढब है 
वर्ना सब दुःख ,सुख हो जाता 
कमबख्त दिल ही तो नहीं है 
बस एक मांस का लोथड है