नि:स्तब्धता !
नि:स्तब्धता रात्री की
बढती रही
निर्विकार
ढूँढती रही
अपनों को
और कभी
अपनों का प्यार
गहराती जाती थी
उतना ही
संग संग रजनी के
कुछ अनमनी सी
कुछ बेकरार
अध्ययन करती
बेजान चित्रों का
कुछ विचित्र
कुछ निराकार
चिंतन करती
अनन्य वेदनाएं
कुछ त्याज्य
कुछ का
करती अंगीकार
नि:स्तब्धता रात्री की
बढती रही
निर्विकार
ढूँढती रही
अपनों को
और कभी
अपनों का प्यार
गहराती जाती थी
उतना ही
संग संग रजनी के
कुछ अनमनी सी
कुछ बेकरार
अध्ययन करती
बेजान चित्रों का
कुछ विचित्र
कुछ निराकार
चिंतन करती
अनन्य वेदनाएं
कुछ त्याज्य
कुछ का
करती अंगीकार