विरह की किताब
दिल हुआ जैसे विरह किताब
उलट पलट कर पन्ने देखे
पर मिल ना पाया कोई हिसाब
अंक गणित सब गलत हो गया
लिखे जुल्मे मिट गये सब
सुरमई आँखों के कुछ सपने
जो रजत सरीखे चमचम करते
उत्सव करते इस जन मंच पर
अब फीके फीके जान से पड़ते
थक हार सब बैठ चुके हैं
सूनी आँखों के पलक द्वार से
धुन्दले हो कर झर झर झरते
वैरागी मन को समझाते
साथ विरह के झूल चुके हैं
रचना की रचना में रच कर
पिव रस पी कर भूल चके है
अम्बर से बरसे सुधियाँ तो
करते छंद मकरंद का पान
हास और परिहास को तज कर
पाते दिल से दिल का अजाब
दिल हुआ जैसे विरह किताब
दिल हुआ जैसे विरह किताब
उलट पलट कर पन्ने देखे
पर मिल ना पाया कोई हिसाब
अंक गणित सब गलत हो गया
लिखे जुल्मे मिट गये सब
सुरमई आँखों के कुछ सपने
जो रजत सरीखे चमचम करते
उत्सव करते इस जन मंच पर
अब फीके फीके जान से पड़ते
थक हार सब बैठ चुके हैं
सूनी आँखों के पलक द्वार से
धुन्दले हो कर झर झर झरते
वैरागी मन को समझाते
साथ विरह के झूल चुके हैं
रचना की रचना में रच कर
पिव रस पी कर भूल चके है
अम्बर से बरसे सुधियाँ तो
करते छंद मकरंद का पान
हास और परिहास को तज कर
पाते दिल से दिल का अजाब
दिल हुआ जैसे विरह किताब