शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

प्रियतमा निराशा थी

प्रियतमा निराशा थी

उदासी की महक
रात भर आती रही
दिल के उपवन से
निशिगंधा ने जाने
अंसुवन पान किया !!

लौट चली हवाए
दे कर दस्तक दर पर
आज फिर किसी सौदाई ने
डूबती तन्हाई का
ऐलान किया !!

बनते  रहे ख्वाब
मिट मिट  कर जाने कितने
बिखरते शिशिर  ने
महकते मधुमास का
आह्वान किया !!

चहचहा उठे दीवाने
शजर पर परिंदे
 अलबेले मौसम ने
तडपती सदा का
भुजपाश  किया !!

प्रियतमा निराशा थी
पौरुष  था प्रियतम
आश दीप जल उठे
जब प्रियतम ने
बिलखती प्रियतमा का
अंगीकार किया !!!