सोमवार, 12 दिसंबर 2011

एक टूटा हुआ सच

एक टूटा हुआ सच

जिंदगी का सच बहुत कडवा है
इसलिए सपनो की चादर ओढ़े  रहता हूँ
कल्पनायों में पीयूष पान करता हूँ
और दो चार क्षण जीने की कोशिश करता हूँ
सच है ख्यालो से पेट नहीं भरता
पीड़ा ख़तम नहीं होती
लेकिन दो चार क्षण भ्रम में जी लेने से
इतनी पहाड़ सी  जिंदगी ख़तम नहीं होती
कुछ उत्साह बढ़ता है कि.....
शायद ................
सपनो मैं पायी ख़ुशी...........
सच जीवन का एक हिस्सा ही बन जाए
इसलिए मित्रो ! मैं स्वप्पन देखा करता हूँ
कभी खुली पलक और कभी बंद आँखों से
सब कहते है  सच से मुख मोड़ता हूँ मैं...
लेकिन भोले लोग यह नहीं समझते कि
इस तरह मैं  सच को जोड़ने की कोशिश करता हूँ