सोमवार, 12 दिसंबर 2011

भ्रम !!!

भ्रम !!!
मुझे अपने भ्रम पे भरोसा है
तुम अपने भरोसे पे भ्रमित रहो
जी लूँगा जीवन जी भर कर मैं
तुम अपने काल में ग्रसित रहो
नफरत का पीयूष पी कर तुम
 क्यों करो  प्रयत्न  जी जाने का
पी प्यार का हाला अपने उर में
मैं  अभिलाषी मर जाने का
प्यार के तंतु बन-बन कर मैं
प्यार  के परदे बुनता हूँ
उनके पीछे फिर चुप चुप कर
तेरा अक्स निहारा करता हूँ
तेरे इनकार से  मेरा विश्वास बढ़ा
तेरी ना में मेरी हां पली
तेरे तजने से तुझे गरूर हुआ
 अफ़सोस ! तेरी जीत में तेरी हार हुई
मैं जीता था ! मैं जी लूँगा
अपने इस प्रेम के श्वासों पर
तुम जीते थे ? क्या जी लोगे ?
तज कर भ्रम के विश्वासों को
चलो मान बढाओ इस भ्रम का
जो भ्रमित हुआ उसे रहने दो
इस भ्रम से बड़ा ना कुछ भ्रम है
इसे शान से दिल में रहने दो