मुझे अब चुप रहने दो !!
मुझे अब चुप रहने दो
खामोशी को कहने दो
भटकता फिर रहा था मैं
बदगुमानी के अंधेरो में
सिसकता ही खड़ा था मैं
जवानी की मुंडेरों पे
ललक कर बढ़ उठे थे हाथ
तुम्हे छूने की चाहत में
ठिठक कर रुक गये थे पग
संग तुम्हारे चलने में
कहा कुछ था सुना कुछ था
वोह लम्हा ही कुछ ऐसा था
सरक जाता था जो राफ्ता
पलट कर फिर बुलाता था
अब जीवन एक सुनसान डगर है
सांस तो है, श्मशान मगर है
घिर आती जब छटा वासंती
मन में छा जाता शिशिर है
उदगार यह मेरे भाव कहाँ है
उन्हें गीत ही रहने दो
खामोशी को कहने दो
मुझे अब चुप रहने दो
मुझे अब चुप रहने दो
खामोशी को कहने दो
भटकता फिर रहा था मैं
बदगुमानी के अंधेरो में
सिसकता ही खड़ा था मैं
जवानी की मुंडेरों पे
ललक कर बढ़ उठे थे हाथ
तुम्हे छूने की चाहत में
ठिठक कर रुक गये थे पग
संग तुम्हारे चलने में
कहा कुछ था सुना कुछ था
वोह लम्हा ही कुछ ऐसा था
सरक जाता था जो राफ्ता
पलट कर फिर बुलाता था
अब जीवन एक सुनसान डगर है
सांस तो है, श्मशान मगर है
घिर आती जब छटा वासंती
मन में छा जाता शिशिर है
उदगार यह मेरे भाव कहाँ है
उन्हें गीत ही रहने दो
खामोशी को कहने दो
मुझे अब चुप रहने दो