सोमवार, 26 दिसंबर 2011

संजोग

संजोग
आफताब चमका
नभ के आँचल से 
अंत  हुआ तम का 
सुप्त वज्र मन से 
जगमगा उठी लौ 
स्नेह  के सुमन की 
बन गई  माला
नेह के अंसुवन की
झंकृत हुये साज
सुर मधुर  लागे
बीती विभावरी
नये स्वप्पन जागे
सुधियों का कोलाहल
मूक हुआ जानो
मन के वृन्दावन में
प्रकट श्याम मानो
झिलमिला उठी देखो
रतन जड़ित लडियां
श्याम से मिलन की
लौट आयी घड़ियाँ
दिवस काल रात्रि
सब होगयी एक
पींघ  बढ़ी वासंती
मिटी वेदना अनेक
धन धन धन्य  भाग
जन्म सुफल आज