संजोग
आफताब चमका
नभ के आँचल से
अंत हुआ तम का
सुप्त वज्र मन से
जगमगा उठी लौ
स्नेह के सुमन की
बन गई माला नेह के अंसुवन की
झंकृत हुये साज
सुर मधुर लागे
बीती विभावरी
नये स्वप्पन जागे
सुधियों का कोलाहल
मूक हुआ जानो
मन के वृन्दावन में
प्रकट श्याम मानो
झिलमिला उठी देखो
रतन जड़ित लडियां
श्याम से मिलन की
लौट आयी घड़ियाँ
दिवस काल रात्रि
सब होगयी एक
पींघ बढ़ी वासंती
मिटी वेदना अनेक
धन धन धन्य भाग
जन्म सुफल आज