बुधवार, 28 दिसंबर 2011

अपना और सपना

अपना और सपना
यह जग है सारा बैगाना
बस इक  दर्द ही है अपना
यथार्थ तो बेहद  कड़वा है
मीठा  बस केवल सपना
बैगानो की तज चिंता
मैं अपनों को अपनाता हूँ
कडवाहट जो मुहं में भर दे
उस सच  से भी कतराता हूँ
चिर काल अमर रहे यह सच
इससे ना मेरा कोई विरोध
जीवन में जो कहर कुहास करे
उसका क्यों  ना हो   अवरोध
जीवन है क्षण -भंगुर जान
हर कर्म संवारा करता हूँ
क्षण क्षण को मिष्टी सा कर दे
और  सपने बांटा करता हूँ
फिर  उपजाता हूँ दर्द नया
और उसको पाला करता हूँ
जो हर पल अपना पन दे दे
इस आशा से अपनाता हूँ 
मंजिल दर मंजिल यूं चलता
अविचलित हूँ देख बेढब रंग
दर्द अपना और मीठा सपना
बना  जीवन का अभिन्न अंग