सौदाई
महज़ आकर्षण को प्यार समझ बैठा रूखे-सूखे पतझड़ को बहार समझ बैठा
ना आना था ,ना आया वोह ,जो सपनो से
दिल का व्यापार कर बैठा
रस्म-ए- उल्फत निभाना था मुश्किल
लगा दाग आँचल पर छुपाना था मुश्किल
रुसवाईयों का अज़ब सा हुजूम था
नज़र जो झुकी तो उठाना था मुश्किल