अंतर्मुख
किया शब् भर इंतज़ार सूरज के निकलने का
किया दिन अपना दुश्वार चंदा के चमकने का
न आना था ,ना आया वोह दी कितनी दुहाई
सोचा चलो बन जाए अब खुद अपनी गवाही
जम गयी काई दिल के पयोधि में
जम गया नीर दिल के नीर निधि में
भावों का जमघट छंटने सा लगा है
दिल में जो उमड़ा था मिटने सा लगा है
हर शख्स यहा बादल सा आकार बदलता है
अपने ही तस्सुवर की डोली में वो सजता है
ढोता है खुद अपना जनाज़ा अपने ही काँधे पर
जीवन के हर इक ढंग से बेजार गुज़रता है
अपनी ही राहो में सिमट जाने का जी चाहता है
अपनी ही आहों से लिपट जाने का जी चाहता है
लौट कर नहीं आता जो चला जाता है 'नीरज '
अपनी ही बाहों में सिमट जाने का जी चाहता है
किया शब् भर इंतज़ार सूरज के निकलने का
किया दिन अपना दुश्वार चंदा के चमकने का
न आना था ,ना आया वोह दी कितनी दुहाई
सोचा चलो बन जाए अब खुद अपनी गवाही
जम गयी काई दिल के पयोधि में
जम गया नीर दिल के नीर निधि में
भावों का जमघट छंटने सा लगा है
दिल में जो उमड़ा था मिटने सा लगा है
हर शख्स यहा बादल सा आकार बदलता है
अपने ही तस्सुवर की डोली में वो सजता है
ढोता है खुद अपना जनाज़ा अपने ही काँधे पर
जीवन के हर इक ढंग से बेजार गुज़रता है
अपनी ही राहो में सिमट जाने का जी चाहता है
अपनी ही आहों से लिपट जाने का जी चाहता है
लौट कर नहीं आता जो चला जाता है 'नीरज '
अपनी ही बाहों में सिमट जाने का जी चाहता है