जल कण
श्यामल सी संध्या की
कुंतल केश राशि से
झरते हुए जलकण
भीग गया मेरा
सब तन -मन
नयनो के कोरों पर
रूक जाते स्फटिक से
भावों की उद्विग्नता से
विचलित हो मन
प्लावन है जल का
चहूँ और मंडल पर
भूल गया सुध-बुध
जल प्लावित मन
रूठ गया मन का मीत
नम है धरा नम है गीत
तड़प उठे बार बार
भाव विहल मन
श्यामल सी संध्या की
कुंतल केश राशि से
झरते हुए जलकण
भीग गया मेरा
सब तन -मन
नयनो के कोरों पर
रूक जाते स्फटिक से
भावों की उद्विग्नता से
विचलित हो मन
प्लावन है जल का
चहूँ और मंडल पर
भूल गया सुध-बुध
जल प्लावित मन
रूठ गया मन का मीत
नम है धरा नम है गीत
तड़प उठे बार बार
भाव विहल मन