शनिवार, 17 दिसंबर 2011

चढ़ते को सलाम !!!!

चढ़ते को सलाम !!!!
जलते  सूरज ने हो मेहरबां मुझको पुकारा
सनसनाती मंद पवन ने था मुझ को संवारा
पर्वत के नेपथ्य से उठने लगा कोलाहल 
तारो से सजी रात ने दिया मुझको इशारा
बजने लगे घड़ियाल फिर वक़्त के मंदिर से
खिलने  लगा सौभाग्य कर्म के अन्दर से
टूटी हुई किश्ती को मिला साहिल का किनारा
जब जाग पड़ा जो सोया मुकद्दर था हमारा
अब चल पड़े साथ अनगिनत जमाने
जीते थे ,जीतेंगे ,वही बात दोहराने
यह सच है गिरा था ,ना मिला कोई सहारा
उठ गये मेरे कदम आज तो मुझे सब ने पुकारा