गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

दास्ताँ- यह जीवन की

दास्ताँ- यह जीवन की

चलो छोड़ो ,रहने दो
दास्ताँ- यह जीवन की
कही हमने  ,सही हमने
दास्ताँ- यह जीवन की
मिले जब थे ..सिले लब थे
अधूरी ही रही अब
दास्ताँ- यह जीवन की
हाशिया जब खींच डाला
दिल के पन्नो पर
बने, बिगड़े ,याँ सिमट जाए
दास्ताँ- यह जीवन की
कट गयी है आधी ,
बाकी भी गुज़र होगी
पूरी हो ही जायेगी
दास्ताँ- यह जीवन की
मिले बिछड़े ,मिले बिखरे
धारे मिल ही जाते हैं
धारा की रवानी है
दास्ताँ- यह जीवन की