अतीत बना खारा जल
बहती है पुरवाई जब बीते हुए पल की
दे जाती है कई अर्थ खोते हुए कल की
धुंधला था अतीत जो वक्त के कोहरे से
चुपके से छलक जाए बन बूँद खारे जल की
प्रकट हुआ भानु सा सुधियों के झरोखे से
चमका फिर कनक सा अंधेरों के झुरमुट से
दिन रात जगाता है अलख यादों के समूह की
यह अतीत है जो बन जाता बूँद खारे जल की
यह वक्त का झोंका जो सरक हाथ से जाता
ग्यानी सा दे ज्ञान न पलट फिर कभी आता
तस्सुवर यह बीते पल का जोहो जाता एकाकी
यह अतीत है जो बन जाता बूँद खारे जल की
बहती है पुरवाई जब बीते हुए पल की
दे जाती है कई अर्थ खोते हुए कल की
धुंधला था अतीत जो वक्त के कोहरे से
चुपके से छलक जाए बन बूँद खारे जल की
प्रकट हुआ भानु सा सुधियों के झरोखे से
चमका फिर कनक सा अंधेरों के झुरमुट से
दिन रात जगाता है अलख यादों के समूह की
यह अतीत है जो बन जाता बूँद खारे जल की
यह वक्त का झोंका जो सरक हाथ से जाता
ग्यानी सा दे ज्ञान न पलट फिर कभी आता
तस्सुवर यह बीते पल का जोहो जाता एकाकी
यह अतीत है जो बन जाता बूँद खारे जल की