मंगलवार, 6 सितंबर 2011

adhbhut darshan

अध्भुत दर्शन

चलो  छोड़ो जख्म पुराने सब
कुछ नये पन का एहसास करे
छोड़ कर  भूली बिसरी बातें
नव रस गीत गुंजार करे
वादे की ना कुछ बात करो
यह बात नहीं अब बहलाती
जो ना  हो पाए  जग संभव
वह मन को पीड़ा  दे जाती
देखो मौसम भी बदल रहा
यह प्राकृतिक नियम अटूट
सब  कुछ बदला करता है
 मैं और तुम क्यों रहे अछूत
परिवर्तन भी होता परिवर्तित
अजब काल के लेख लिखे
भाग्य की चूनर  रंगत बदले
परिवर्तन के बोल कहें
लो रंग सजा लो फिर उर में
फिर होगा जीवन सहज सुखद
वादों की टूटी कड़ियों में
जुड़ जाएगा अध्भुत दर्शन