गुरुवार, 1 सितंबर 2011

Toota kinaaraa

टूटा किनारा
मैं!!!! टूटा किनारा
एक ऐसी  नदी का
जिस का पानी सूख चुका है !
बिलकुल ऐसे .. जैसे
मानव
मानवता सा रूठ चुका है !
याद करता हूँ उछाल
जब भी उस बहते पानी का
तो अब भी भीग जाता हूँ
धारा मैं बहता बहता
कुछ कुछ रीत जाता हूँ !
रूक जाता था हर राही
देख मुझे मुस्काता था
बैठ किनारे ठंडी छाह मैं
क्लांत मन को सुस्ताता था .
अब मैं विलग हुआ जननी से
अस्तित्व हुआ मेरा मलीन
वो हास-परिहास ,वो कल-कल
इन सब से हुआ जीवन विहीन
नभ पर देखा करता हूँ मै अक्सर
उड़ते बेपर बादल के टुकड़े
भिन्न-भिन्न मुद्रायों में ढलते
बेपरवाह सब क्रीडा करते

देख शुभ्र शुष्क और रूखे बादल
शंकित मन में  प्रशन है उठता
औचित्य है क्या इनके अस्तित्व का
अंतर्द्वंद से उलझन करता
इस सूखे पन से क्या रिश्ता है
मेरा और इस शुभ्र  बादल का
एक धरा पर बेबस लेटा
एक उन्मुक्त है विचरण करता
ठहर गया जो जीवन ठहरा
चलंत हुआ तो जगत रुपहला
चल अचल के भाव को पढ़ कर
वक़्त की गिनती गिना करता हूँ
मैं!!!! टूटा किनारा
एक ऐसी  नदी का
जिस का पानी सूख चुका है !