बुधवार, 21 सितंबर 2011

अनोखा मिलन

अनोखा मिलन

झुक रहा था नभ
छू लेने धरती को
आकुल थी अवनि भी
अम्बर में छुपने को
संजोग की बेला में
फैला नव रस चहुँ और
गुंजित हुईं दिशी दस
फैला सर्वत्र शोर
खामोश थी धरा
चुप हुआ गगन
अचंभित थे तारागन
निरख अनोखा मिलन