मंगलवार, 6 सितंबर 2011

हम जाने क्या कह जाते हैं

हम जाने क्या कह जाते हैं
कोरे कागज़ के टुकड़ो पर
शब्द दो चार बिखराते हैं
यथार्थ और कल्पना की कूची से
जीवन के चित्र बनाते हैं
हम जाने क्या कह जाते हैं
कुछ धुन्दले कुछ उजले चित्रण
कुछ श्वेत श्याम ,रंगीले चित्रण
हँसते और बिलखते चित्रण
कुछ घोर निराशा में है डूबे
कुछ उज्जवल आशा से निखरे चित्रण
कुछ आस दिखाएँ आते कल का
कुछ त्रास बताएं बीते पल का
रंचक रोष ईष्या और द्वेष को भूले
रंचक प्रेम वात्सल्य में डूबे
कुछ भाव हमारे केवल अपने
कुछ ख्याल तुम्हारे लाये सपने
हर बोल नया दोहराते हैं
हम जाने क्या कह जाते हैं