बुधवार, 21 सितंबर 2011

आत्म मंथन

आत्म मंथन
वीणा के तारों में
 अजब सा कसाव है
बजता है  सरगम नया
फिर भी मन उदास है
मीठे बोल मिश्री से
 फीकी मिठास है
पी लिए समुन्दर आंसू के
फिर भी अभी प्यास है
जमी बर्फ गर्म दिल पे
कैसा  यह कुहास है
इठलाते आषाढ़ में भी
रीता सुहास है
मृत हुई आशाएं
उत्साह की फिर भी आस है
नव चेतना जगाओ अब
ज्योत्स्ना बुलाओ अब
थकित हुआ मार्ग में
 देहरी  से मिलाओ अब