शनिवार, 17 सितंबर 2011

नीड़

नीड़
नीड़ बनाया बड़े जतन से
जोड़े  तिनका तिनका
तेज़ हवा का झोंका आकर
तोड़े    जैसे सपना
भीगे नयन ढूंढे द्वार को
स्वागत करते वन्दनवार को
रौशन होती हर दीवार को
सोंधे सोंधे बसे प्यार को
उर  संचित अपने संसार को
सब कुछ नष्ट भ्रष्ट था ऐसे
रीत गया सागर तट जैसे
उर की भाषा पढ़ी उर ने जब
संचित कर टूटे मन को तब
सुंदर  सुखद इक भुवन बनाया
प्रेम का उस में दीप जलाया 
साहस का तेल ,आशा की बाती
जीवन पथ पर जले दिन राती
अपना वादा बस अपने से
हर पल यह एहसास दिलाती