गुरुवार, 29 सितंबर 2011

यादे तो कोरा दर्पण है

यादे तो कोरा दर्पण है
तेरी याद का हर लम्हा
जब जब बोझिल लगता है
आँखों से आंसू बहते हैं
दिल कतरा कतरा गिरता है
सब आवाज़े गूंगी लगती है
बहरा हो जाता कोलाहल
बिरहा से  रीते पल पल में
इक आस का दीपक जलता है
रात की डोली में सज कर
जब याद दुल्हन सी आती है
अरमानो की भरी मांग
अंगडाई ले कर जगती है
यादे जीवन को उदास करे
यादे ही मन में उल्लास भरे
बन बन कर उभरे बहुरूपी
यादो से और भी प्यास बढ़े
यादे तो कोरा दर्पण है
एक अक्स दिखाया करती हैं
यथार्थऔर कल्पना के मध्य
इक संतुलन बनाया करती है