गुरुवार, 15 सितंबर 2011

एतमाद

एतमाद

मिलोगे जब कभी इत्तफाक से
 जीवन के चौराहे पर
तो क्या जान लोगे कि
यही है  दिल जो धड़का था
कभी खातिर तुम्हारी
यही थे नयन जो तकते थे
कभी राहें  तुम्हारी
मिल भी जाओगे तो
क्या होगा कभी एतमाद कि
यही वोह रूह थी  जो
भटकी थी दिन रात
पा जाने को
इक झलक तुम्हारी
ना भूलोगे कभी
है यह एहसास भी मन को
पाओगे जब कभी तन्हा अपने आप को
तो बरबस मुस्कुराओगे
करोगे याद और फिर गुनगुनाओगे
हाँ इक पगली थी
जो कर जाती थी
व्यथित राते तुम्हारी
छनकती घूंघरूयों से
खनकती चूड़ियों से
महकती सुरभियों से
दहकती जुगनूयों से
वोह इक चमकती आभ थी
जो कर जाती थी
रौशन राहें तुम्हारी
भ्रम है याँ सच है
पर मन में कुछ पलता है
जो दुर्बल होते जीवन को
इक आशा से भरता है
आशा जो देती सुर में ताल
आशा  धोती मन का मलाल
आशा जो देती तन  में प्राण फूँक
आशा जो देती नव आशा की कूक