शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

Jindagi

जिंदगी
देखा है  मैंने तुम्हे किसी  मोड़ पर
खड़े बेबसी में पुकारते हुये
त्रिन-त्रिन जोड़ कर नीड़ बनाते हुए
तेज़ हवा को एक क्षण में
उस नीड़ को बिखराते हुए
पैबंद लगे घागरे को
बूढी झुकी कमर पर लदे
सड़क पर कंकर  चुनते हुये
धंसी पीली आँखों को
किसी बचपन के साथ
भीख मांगते हुये
फिर भी तुम
कितनी हसीन हो
क्षण भर में बिखरे नीड़ को
इकट्ठा करती हो
बूढी झुकी कमर के
घागरे में आशा का
एक और पैबंद
जोडती हो
बुझी निराश पीली आँखों को
सपनो से भर  देती हो
और !!
बहारों के गीत गुनगुनाते
नये मोड़ की तलाश में
आगे बढ़ जाती हो !!
जिंदगी , ओ जिंदगी !
तुम कल्पना हो किसी कवि की
प्यार हो  किसी प्रेमी का
श्रद्धा हो, किसी पुजारी की
विश्वास को किसी भक्ति  का
उमंग हो मेरे बचपन की
महक हो मदमाते यौवन की
अनुभव हो बूढ़े सपनो का
लक्ष्य हो जीवन साधनाओ का
देखा है मैंने तुम्हे
हर मोड़ पर रंग बदलते हुये
कुछ मीठे और कुछ कडवे
पलों के निशान छोड़ते हुये