चन्दा से
विभावरी के कयी रूप निहारे
देखे निशि कैसे करे थिथोली
तारा गन की नयन मिचोली
मादक निषिगन्धा की खुशबू
संग लिये अपना हम जोली
कैसे विरह संजोग को तरसे
बिन बादल पानी जो बरसे
मौन रागिनी करती गुन्जन
जब् आती शब् नम की टोली
लहरे हो जाती उच्श्रिन्खल्
तोड् किनारे बाहर आती
शङ्ख सीप मोती और कच्हप्
करे अमर्यादित सागर की बोली
कही बाल निशा भूखी भी सोती
रजनी तम की काली में रोती
कभी रात्रि बनी विकराल भयन्कर
कही सहम थिथक जाती स्वयम्भर्
कभी करती मन की बाते चुपचुप्
और बेबाक स्वर् की कभी बोली
चलो हम भी जागे संग तुम्हारे
विभावरी के कयी रूप निहारे