सोमवार, 26 सितंबर 2011

चन्दा से


चन्दा से 

चलो   हम भी जागे संग तुम्हारे 
विभावरी के कयी  रूप निहारे
देखे  निशि कैसे करे थिथोली 
तारा  गन की नयन मिचोली 
मादक निषिगन्धा की खुशबू 
संग लिये अपना हम जोली 
कैसे विरह संजोग को तरसे 
बिन बादल पानी जो बरसे 
मौन रागिनी करती  गुन्जन 
जब् आती शब् नम की टोली
लहरे हो जाती उच्श्रिन्खल् 
तोड् किनारे बाहर आती 
शङ्ख सीप मोती और कच्हप्  
करे अमर्यादित सागर की बोली
कही बाल निशा भूखी भी सोती
 रजनी तम की काली में रोती
कभी रात्रि बनी विकराल भयन्कर
कही सहम थिथक जाती स्वयम्भर् 
कभी करती मन की बाते चुपचुप्
और बेबाक स्वर् की कभी बोली 
चलो हम भी जागे संग तुम्हारे 
विभावरी के कयी  रूप निहारे