पूर्णता
उमड़ पड़ा फिर सागर
देख विधु की पूर्णता
भर लाया नव रस गागर
देख विधि सम्पूर्णता
खिल उठा मधुमास
देख प्राकृतिक विकास
छाई सुन्दरता परिपूर्ण
निखर यौवन अपूर्व
आया ठिठुरा शिशिर
फैली पूर्णता प्रचुर
धरती का अंग अंग
ढके दल और भृंग
सच है ! खुश होती सज्जनता
देखि पर पूर्णता
हा विकास, हा प्रमोद
कहती दुर्जनता
उमड़ पड़ा फिर सागर
देख विधु की पूर्णता
भर लाया नव रस गागर
देख विधि सम्पूर्णता
खिल उठा मधुमास
देख प्राकृतिक विकास
छाई सुन्दरता परिपूर्ण
निखर यौवन अपूर्व
आया ठिठुरा शिशिर
फैली पूर्णता प्रचुर
धरती का अंग अंग
ढके दल और भृंग
सच है ! खुश होती सज्जनता
देखि पर पूर्णता
हा विकास, हा प्रमोद
कहती दुर्जनता