गुरुवार, 1 सितंबर 2011

Niyati

नियति

अश्रु रहित वेदना
ले गयी हर चेतना
बहा भावों का मवाद
कैसा अजब इत्तफाक
हो कर हतप्रभ , अवाक
किया भाग्य से संवाद
क्या यही था झेलना ?

करे सागर हिल्लोर
पीड़ा का नही छोर
किया नभ ने प्रलाप
छेड़े सरिता अलाप
बहा झर झर राग
हुआ मन में मलाल मृत सुर, लय, ताल
क्या यही समर था छेड़ना ?

पड़ी धरा पर छाया
नन्हा फूल मुस्काया
लगे साल या महीना
चीर धरती का सीना
लेकर बड़ी नाजुक काया
नव अंकुरित हो कर मैं आया
यहीं था मुझे खेलना !!!!!