विनती
बुला लो मुझ को फिर तुम मेहरबान हो कर
झांकता कनखियों से आज भी वो मंज़र
मिले थे जब मुझे तुम निगहबान हो कर
बिछड़ा हूँ मैं दरिया से ,बहता हुआ इक धारा
भटका हूँ बहुत मैं ,बेकल खोजूं इक किनारा
सौगंध है तुम को इन बिगड़े मझदारो की
रहो बन कर मेरा माझी ,बढ़ कर दो सहारा
संभालो मुझ को फिर तुम खेवन हार हो कर
बुला लो मुझ को फिर तुम मेहरबान हो कर
बुला लो मुझ को फिर तुम मेहरबान हो कर
झांकता कनखियों से आज भी वो मंज़र
मिले थे जब मुझे तुम निगहबान हो कर
बिछड़ा हूँ मैं दरिया से ,बहता हुआ इक धारा
भटका हूँ बहुत मैं ,बेकल खोजूं इक किनारा
सौगंध है तुम को इन बिगड़े मझदारो की
रहो बन कर मेरा माझी ,बढ़ कर दो सहारा
संभालो मुझ को फिर तुम खेवन हार हो कर
बुला लो मुझ को फिर तुम मेहरबान हो कर