नन्हा दिया
दूर पहाड़ी पर
इक झोंपड़ी में
इक दिया
टिमटिमाता है
और वह नन्हा दिया
टिमटिमाता हुआ
कुछ इंगित करता रहता है
कई बार सोचती हूँ कि
लिख डालू वह सब
जो मैं कह नहीं पाती
फिर सोचती हूँ कि
लिखा हुआ पढ़े गा कौन ?
और गर पढ़ भी लिया
तो समझे गा कौन ?
भाव उध्वेलित होते हैं
और बस मन में ही
रह जाते हैं
अभिव्यक्ति की कामना ले कर
पुनह सुप्त हो जाते हैं
और दिया टिमटिमाता
अपनी लौ फैलता
जलता रहता है ........
दूर पहाड़ी पर
इक झोंपड़ी में
इक दिया
टिमटिमाता है
और वह नन्हा दिया
टिमटिमाता हुआ
कुछ इंगित करता रहता है
कई बार सोचती हूँ कि
लिख डालू वह सब
जो मैं कह नहीं पाती
फिर सोचती हूँ कि
लिखा हुआ पढ़े गा कौन ?
और गर पढ़ भी लिया
तो समझे गा कौन ?
भाव उध्वेलित होते हैं
और बस मन में ही
रह जाते हैं
अभिव्यक्ति की कामना ले कर
पुनह सुप्त हो जाते हैं
और दिया टिमटिमाता
अपनी लौ फैलता
जलता रहता है ........