बाढ़ का प्रकोप
धुलता रहा दर्द आंसूओ के धारा में
भीगता रहा मन जबकि था किनारे पर
जज़्ब बादल से बनते रहे बिगड़ते रहे
खामोशियों से हर सितम सहते रहे
कट गये थे पंख उस उमंग के ,मुस्कान के
जो की उडती थी कभी स्वछंद मन आस्मां पे
आश का हारिल भी सहमा सा नज़र आता है अब
दब गये प्रयत्न सब वहशत के कब्रिस्तान में
हो गयी जल मग्न धरती , जल के उफनते भाव से
सो रहा है कर्णधार ,अपनी सुखों के नाव मैं
धुलता रहा दर्द आंसूओ के धारा में
भीगता रहा मन जबकि था किनारे पर
जज़्ब बादल से बनते रहे बिगड़ते रहे
खामोशियों से हर सितम सहते रहे
कट गये थे पंख उस उमंग के ,मुस्कान के
जो की उडती थी कभी स्वछंद मन आस्मां पे
आश का हारिल भी सहमा सा नज़र आता है अब
दब गये प्रयत्न सब वहशत के कब्रिस्तान में
हो गयी जल मग्न धरती , जल के उफनते भाव से
सो रहा है कर्णधार ,अपनी सुखों के नाव मैं