सोमवार, 26 सितंबर 2011

बाढ़ का प्रकोप

 बाढ़ का प्रकोप

धुलता रहा दर्द आंसूओ के धारा में
भीगता रहा मन जबकि था किनारे पर
जज़्ब बादल से बनते रहे बिगड़ते रहे
खामोशियों से हर सितम सहते रहे
कट गये थे पंख उस उमंग के ,मुस्कान के
जो की उडती थी कभी स्वछंद मन आस्मां पे
आश का हारिल भी सहमा सा नज़र आता है अब
दब गये  प्रयत्न सब वहशत के कब्रिस्तान में
हो गयी जल मग्न धरती , जल के उफनते भाव से
सो रहा है कर्णधार ,अपनी सुखों के नाव मैं