गुरुवार, 1 सितंबर 2011

mulyakan

मूल्यांकन
क्या कर पाओगे मूल्यांकन ?
लोलुपता और तानाशाही का
जब ओढ़े बैठे हो आवरण
गिने पाप तुमने पोरों पर
करी झूठ  और झूठ  की गिनती
वचन भरा मिथ्या असत्य का
और सुनी मक्कारों की  विनती
अपनाया "विष कुम्भं पायो मुखं "
क्या कर पायोगे मूल्याकन ?
भ्रष्टाचार की भस्म रमाई
सुमति-कुमति की दशा भुलाई
रिद्धि -सिद्धि और कुख्याति का
ना कर पाए ठीक चयन
लिया सदा सच का दमन
क्या कर पाओगे मूल्यांकन ?
सर्व विदित है जगत में उक्ति
झूठ उड़ा बिन पंख अयुक्ति
धीरे चलता है सत्य का ध्योता
पर सच जगती पे बेफिक्र है सोता
अल्पाऊ है झूठ का वाचक
दीर्घायु है सत्य का वाचाक
हो निराधार इस का वरण
क्या कर पायोगे मूल्याकन ?