गुरुवार, 15 सितंबर 2011

चलो कुछ कर दिखाएँ

चलो कुछ कर दिखाएँ


हर रात की तरह चांदनी आँगन में आ कर बिखर गयी .लेकिन आज  वह आर्द थी
देख रही थी भीगे नयनो से मुझे और जैसे कह रही हो कि" तेरी वेदना में मैं भी शामिल हूँ "......
रात भर शबनम गिरती रही और भिगोती रही सारी वनस्पतियों को जो सुबह होने पर यह बता गयी
कि रोये  हैं हम सब साथ साथ .... भोर का तारा टिमटिमाया और यह पैगाम लाया कि आओ !  तक रहा हूँ बाट तेरी ,डबडबाई आँखों से बहे है जो भी आंसू , झिलमिलाते है , टिमटिमाते है तुम को बुलाते है और कहते हैं कि 'तेरी इस टिमटिमाहट की टीस में मेरी भी  भागीदारी है '
 बादलो की ओट से बिखेरी  रश्मिया जब चमकते सूरज ने तो  देखा ..बुला रही थी वसुंधरा ,बाहे फैलाए , मुस्कुराये , हिम्मत बंधाये , और धुल गयी सब वेदना ........सोचा हम ने भी कि चलो कुछ कर दिखाएँ ..........