उदासी की फितरत
उदासी कर गयी हर वर्क पर यूं दस्तखत
बहार सी रूह भी पतझर बन गयी यारो
ख़ुशी ना दर कभी आयी मेहमान बन कर भी
रस्म-ए-मेहमानवाजी भी बिसर गयी यारो
ना करो अब दवा इस मर्ज़ उदासी का
उदासी की फितरत ही बन गयी यारो
शनिवार, 28 अगस्त 2010
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
ek vyktitv
एक व्यक्तित्व
एक व्यक्तित्व
उजला-उजला सा
रहस्य सरीखा
खुलता-खुलता सा
दिन चढ़ता तो ,दिनकर जैसा
तेज, प्रतापी, प्रबलकर वैसा
है उन्नत भाल
भुज विशाल
तुरग चाल
स्वछंद मुखर
मुस्कान अधर
दिन भर रहता ,बिलकुल व्यस्त
शाम ढले , सूर्य होता अस्त
तो बन जाता बिलकुल चंदा सा
मृदु कोमल ठंडा ठंडा सा
उसकी कंठ मिठास
देती दिलासा
और विश्वास
वह कल भी था , आज भी है
और कल भी रहेगा
मेरे आस-पास !!!!!!
एक व्यक्तित्व
एक व्यक्तित्व
उजला-उजला सा
रहस्य सरीखा
खुलता-खुलता सा
दिन चढ़ता तो ,दिनकर जैसा
तेज, प्रतापी, प्रबलकर वैसा
है उन्नत भाल
भुज विशाल
तुरग चाल
स्वछंद मुखर
मुस्कान अधर
दिन भर रहता ,बिलकुल व्यस्त
शाम ढले , सूर्य होता अस्त
तो बन जाता बिलकुल चंदा सा
मृदु कोमल ठंडा ठंडा सा
उसकी कंठ मिठास
देती दिलासा
और विश्वास
वह कल भी था , आज भी है
और कल भी रहेगा
मेरे आस-पास !!!!!!
एक व्यक्तित्व
बुधवार, 25 अगस्त 2010
batlaaye kaun
बतलाये कौन?
बेचैन हैं उनसे मिलने को
यह उनको जा बतलाये कौन
एक दर्द छिपा है सीने में
यह उनको जा दिखलाए कौन ?
मेरे शहर के लोगों का अब
तारुफ़ हैं मेरी तन्हाई से
ना करदूं सिजदा बेबस हो कर
वाकिफ है मेरी रुसवाई से
एक कसक सी उठती है सीने मे
अब उनको जा समझाए कौन?
समझ दीवाना छोड़ दिया है
मेरे शहर के लोगो ने
उल्फत में भी जी लेता हूँ
मान लिया है लोगो ने
अब सुर्ख आँखों के सबब को
पूछे कौन ,बतलाये कौन ?
बेचैन हैं उनसे मिलने को
यह उनको जा बतलाये कौन
एक दर्द छिपा है सीने में
यह उनको जा दिखलाए कौन ?
मेरे शहर के लोगों का अब
तारुफ़ हैं मेरी तन्हाई से
ना करदूं सिजदा बेबस हो कर
वाकिफ है मेरी रुसवाई से
एक कसक सी उठती है सीने मे
अब उनको जा समझाए कौन?
समझ दीवाना छोड़ दिया है
मेरे शहर के लोगो ने
उल्फत में भी जी लेता हूँ
मान लिया है लोगो ने
अब सुर्ख आँखों के सबब को
पूछे कौन ,बतलाये कौन ?
koyee sath nahi deta
कोई साथ नहीं देता
अब गम भी साथ नहीं देता
हम जैसे गम के मारों का
कोई मर्ज़ भी साथ नहीं देता
हम जैसे दर्द के मारों का
माझी भी साथ नहीं देता
हम जैसे मझधारो का
दरिया भी साथ नहीं देता
हम जैसे टूटे दश्त किनारों का
मधुबन भी साथ नहीं देता
हम जैसे पतझारों का
अपना गाँव नहीं बसता
हम जैसे बंजारों का
जाने वालों की क्या चिंता
आने वाले की फिक्र करे कोई
अब रोक लिया है मार्ग
किसी ने आती हई बहारों का
अब गम भी साथ नहीं देता
हम जैसे गम के मारों का
कोई मर्ज़ भी साथ नहीं देता
हम जैसे दर्द के मारों का
माझी भी साथ नहीं देता
हम जैसे मझधारो का
दरिया भी साथ नहीं देता
हम जैसे टूटे दश्त किनारों का
मधुबन भी साथ नहीं देता
हम जैसे पतझारों का
अपना गाँव नहीं बसता
हम जैसे बंजारों का
जाने वालों की क्या चिंता
आने वाले की फिक्र करे कोई
अब रोक लिया है मार्ग
किसी ने आती हई बहारों का
Shubh kaamnaayen
शुभ कामनाएं
बन राज हंस, जीवन सरिता पार करो तुम
बन दीपक इस जग तम का नाश करो तुम
मानवता के बन कर सजग प्रहरी
मानव का कल्याण करो तुम
बन मेहा उल्लास का बरसो आँगन में
बन नेहा परिहास का झांको चिलमन से
बन सुमन कचनार की महको उपवन में
बन वसंत बयार कि गुजरो मधुबन से
हो पर्वत की तुहिन श्रृंखला आसमान को छू कर आयो
हो दानिश, कि भेद क्षीर-नीर का कर पायो
बढे सामर्थ्य तुम्हारा कि दिन-ओ-दिन करो तरक्की
करे कामना यही कि ईश दे तुम को शक्ति
बन राज हंस, जीवन सरिता पार करो तुम
बन दीपक इस जग तम का नाश करो तुम
मानवता के बन कर सजग प्रहरी
मानव का कल्याण करो तुम
बन मेहा उल्लास का बरसो आँगन में
बन नेहा परिहास का झांको चिलमन से
बन सुमन कचनार की महको उपवन में
बन वसंत बयार कि गुजरो मधुबन से
हो पर्वत की तुहिन श्रृंखला आसमान को छू कर आयो
हो दानिश, कि भेद क्षीर-नीर का कर पायो
बढे सामर्थ्य तुम्हारा कि दिन-ओ-दिन करो तरक्की
करे कामना यही कि ईश दे तुम को शक्ति
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
Rone walon se
रोने वालों से
रोने से मिल जाती अगर मंजिल
तो आज एक दरिया आंसू का मेरा भी होता
रोने से कट जाता कठिन सफ़र यूं
तो शबनम के हर कतरे पे मेरे आंसू का निशां होता
यूं रोने से बदल जाता नसीबा अगर
रो- रो कर मैंने भी हाल बेहाल किया होता
ऐ रोने वाले! समझ ले तू मर्म रोने का
पछताए गा वर्ना कि सिवा रोने के कुछ और किया होता
रोने से मिल जाती अगर मंजिल
तो आज एक दरिया आंसू का मेरा भी होता
रोने से कट जाता कठिन सफ़र यूं
तो शबनम के हर कतरे पे मेरे आंसू का निशां होता
यूं रोने से बदल जाता नसीबा अगर
रो- रो कर मैंने भी हाल बेहाल किया होता
ऐ रोने वाले! समझ ले तू मर्म रोने का
पछताए गा वर्ना कि सिवा रोने के कुछ और किया होता
kha do sab se
कह दो सब से
कह दो ! इन घटाओं से
नभ में छा जाएँ
फिरोजी आलम बनाए
कह दो ! इन हवाओं से
मस्त सन सनाएँ
नया सरगम बनाएं
कह दो! इन बहारों से
कोई गीत गुन गुनाएं
उत्सव मनाएं
आयी शुभ वेला है
संग उत्साह अलबेला है
होने को स्वयं सिद्ध
कोई चल पड़ा अकेला है
कह दो ! इन घटाओं से
नभ में छा जाएँ
फिरोजी आलम बनाए
कह दो ! इन हवाओं से
मस्त सन सनाएँ
नया सरगम बनाएं
कह दो! इन बहारों से
कोई गीत गुन गुनाएं
उत्सव मनाएं
आयी शुभ वेला है
संग उत्साह अलबेला है
होने को स्वयं सिद्ध
कोई चल पड़ा अकेला है
सोमवार, 23 अगस्त 2010
Neer Ki dhara
नीर की धारा
जैसे नीरद से बहती नीर की धारा
धो देती है धरती का कलुष सारा
वैसे ही नैनो से बहती अश्रु धारा
कर देती है ख़तम मन-मुटाव सारा
ओढ़ चुनरिया इन्द्रधनुष की सतरंगी
सज जाती है धरा दुल्हन सी नवरंगी
नव सृजन की लिए कामना करती अभिनन्दन
निश्चलता से हाथ जोड़ करती जगवंदन
हो जाता है मानस मंथन अश्रु वर्षा से
शीतल हो जाता अंतस संतप्त विधा से
धुल जाता अवसाद होता व्यक्तित्व निखार
हो जाता है मानव उधय्त करने को पुरषार्थ
(अपने जनम दिन पर स्वयं को विशेष उपहार )
जैसे नीरद से बहती नीर की धारा
धो देती है धरती का कलुष सारा
वैसे ही नैनो से बहती अश्रु धारा
कर देती है ख़तम मन-मुटाव सारा
ओढ़ चुनरिया इन्द्रधनुष की सतरंगी
सज जाती है धरा दुल्हन सी नवरंगी
नव सृजन की लिए कामना करती अभिनन्दन
निश्चलता से हाथ जोड़ करती जगवंदन
हो जाता है मानस मंथन अश्रु वर्षा से
शीतल हो जाता अंतस संतप्त विधा से
धुल जाता अवसाद होता व्यक्तित्व निखार
हो जाता है मानव उधय्त करने को पुरषार्थ
(अपने जनम दिन पर स्वयं को विशेष उपहार )
रविवार, 22 अगस्त 2010
main hoon pani
मैं हूँ पानी
जब तक मैं पानी हूँ
बहते दरिया का
तभी तक है मुझ में रवानी
मिल जाता हूँ किसी बादल से
तो हूँ संगीत बारिश का
हो जाता रूहानी
मिलता हूँ हवा से
ले कर रूप शबनम का
भरता हूँ कली कलिका में
एक खुशबू सुहानी
गर मिल जाऊ किसी जौहड़ से
सड़ जाता हूँ खड़ा -खड़ा
तो काल ही
है मेरी निशानी
ठहरे जीवन
तो रुक जाएँ साँसें
बस चारों तरफ
मौत की छा जाये चुप्पी
और चलता है जीवन
उमंग देता है अंतस में
बस यही है मेरी कहानी
जब तक मैं पानी हूँ
बहते दरिया का
तभी तक है मुझ में रवानी
मिल जाता हूँ किसी बादल से
तो हूँ संगीत बारिश का
हो जाता रूहानी
मिलता हूँ हवा से
ले कर रूप शबनम का
भरता हूँ कली कलिका में
एक खुशबू सुहानी
गर मिल जाऊ किसी जौहड़ से
सड़ जाता हूँ खड़ा -खड़ा
तो काल ही
है मेरी निशानी
ठहरे जीवन
तो रुक जाएँ साँसें
बस चारों तरफ
मौत की छा जाये चुप्पी
और चलता है जीवन
उमंग देता है अंतस में
बस यही है मेरी कहानी
शनिवार, 21 अगस्त 2010
Praat Suhani
प्रात सुहानी
रात्रि के तामस को हरती
आती है जब प्रात सुहानी
सर्वत्र आशा की स्वर्णिम आभा
बिखरा जाती है प्रात सुहानी
रात-रात भर मौन रागिनी
अश्रु पूरित करती है
नभ से गिरती जलकण बूँदें
धरती आँचल में भर लेती है
कुसुम और तरु- पल्लवियों पर
फैली नन्ही जल- कण बूंदे
और नहीं कुछ, बस शबनम है
ऐसा बतलाती प्रात सुहानी
नव कलिका हरित वसुधा पर
पीत वसन जब धारण करती
अलि कुंजो की गुंजन से
मधुर छटा गुंजित हो जाती
अलसाया गदराया नव यौवन
उठता है अंगडाई ले कर
जीवन कर लो रस से सिंचित
ऐसा समझाती प्रात सुहानी
रात्रि के तामस को हरती
आती है जब प्रात सुहानी
सर्वत्र आशा की स्वर्णिम आभा
बिखरा जाती है प्रात सुहानी
रात-रात भर मौन रागिनी
अश्रु पूरित करती है
नभ से गिरती जलकण बूँदें
धरती आँचल में भर लेती है
कुसुम और तरु- पल्लवियों पर
फैली नन्ही जल- कण बूंदे
और नहीं कुछ, बस शबनम है
ऐसा बतलाती प्रात सुहानी
नव कलिका हरित वसुधा पर
पीत वसन जब धारण करती
अलि कुंजो की गुंजन से
मधुर छटा गुंजित हो जाती
अलसाया गदराया नव यौवन
उठता है अंगडाई ले कर
जीवन कर लो रस से सिंचित
ऐसा समझाती प्रात सुहानी
ek khwaab
एक ख्वाब
जो हकीकत मान बैठी थी जिंदगी
हर एक रूह में
खुद को ढूँढती थी जिंदगी
साबुत दर्पण में
टूटे बिम्ब से यह एहसास हुआ
कि टूटे दर्पण में
अपना बिम्ब जोड़ती थी जिंदगी
जो हकीकत मान बैठी थी जिंदगी
हर एक रूह में
खुद को ढूँढती थी जिंदगी
साबुत दर्पण में
टूटे बिम्ब से यह एहसास हुआ
कि टूटे दर्पण में
अपना बिम्ब जोड़ती थी जिंदगी
Muskuraahat
मुस्कराहट
पूछा हम ने एक दिन मुस्कराहट से
कहाँ रहती हो ?
आंधी की तरह आती हो
तूफ़ान की तरह चली जाती हो
एक झलक दिखला कर गुम हो जाती हो!
मुस्कुरा कर बोली यूं
सीप के मोती में
पूनम की ज्योति में
पवन की ताल में
सागर उत्ताल में
जिसमे भी निश्छलता पाओगी
उसकी मुस्कराहट में मुझे
दमकता हुआ पाओगी
पूछा हम ने एक दिन मुस्कराहट से
कहाँ रहती हो ?
आंधी की तरह आती हो
तूफ़ान की तरह चली जाती हो
एक झलक दिखला कर गुम हो जाती हो!
मुस्कुरा कर बोली यूं
सीप के मोती में
पूनम की ज्योति में
पवन की ताल में
सागर उत्ताल में
जिसमे भी निश्छलता पाओगी
उसकी मुस्कराहट में मुझे
दमकता हुआ पाओगी
शुक्रवार, 20 अगस्त 2010
ktra-a-aansoo
कतरा- ए- आंसू
आज फिर !
हमने अपने चेहरे को
आंसूओ से धोया है
और लोग !
कहते हैं चेहरे की
खूबसूरती में निखर आया है.
ऐ रोने वाले ! सीख के रोने का सलीका
वरना लोग क्या जाने
तेरे आंसू का हर एक कतरा
दिल के समुंदर में
तूफ़ान लाया है !
आज फिर !
हमने अपने चेहरे को
आंसूओ से धोया है
और लोग !
कहते हैं चेहरे की
खूबसूरती में निखर आया है.
ऐ रोने वाले ! सीख के रोने का सलीका
वरना लोग क्या जाने
तेरे आंसू का हर एक कतरा
दिल के समुंदर में
तूफ़ान लाया है !
khamoshi ki baat
ख़ामोशी
खामोश ख़ामोशी !
अपनी रह पर
निरंतर चलती रही
निर्झर सरिता नद !
इसे पास बुलाते रहे
सूखे पत्ते !
इसे अपनी खडखडाहट से
निमंत्रण देते रहे
सागर अपने आगोश में
समेटने को व्याकुल रहा
चंदा अपना साथी
बनाने को आतुर रहा
पर ख़ामोशी
खामोश निगाहों से तकती रही
तन्हा ही खामोश राहों पर
चलती रही
खामोश ख़ामोशी !
अपनी रह पर
निरंतर चलती रही
निर्झर सरिता नद !
इसे पास बुलाते रहे
सूखे पत्ते !
इसे अपनी खडखडाहट से
निमंत्रण देते रहे
सागर अपने आगोश में
समेटने को व्याकुल रहा
चंदा अपना साथी
बनाने को आतुर रहा
पर ख़ामोशी
खामोश निगाहों से तकती रही
तन्हा ही खामोश राहों पर
चलती रही
khamoshi
ख़ामोशी
कौन कहता है?
ख़ामोशी
बात नहीं करती
गुप- चुप गुप-चुप रहती है
कुछ इज़हार नहीं करती!
होना पड़ता है
खामोश इसे सुनने के लिए
बडबोले के साथ
मगर यह
बात नहीं करती
कौन कहता है?
ख़ामोशी
बात नहीं करती
गुप- चुप गुप-चुप रहती है
कुछ इज़हार नहीं करती!
होना पड़ता है
खामोश इसे सुनने के लिए
बडबोले के साथ
मगर यह
बात नहीं करती
bin tumhare
बिन तुम्हारे
जी रहे थे और जी ही लेंगे
बिन तुम्हारे
पर!
भुला ना पायेंगे
वोह पल
जो बीते संग तुम्हारे
जाने वाले! इतना तो
बताते जाना
कब लौट कर आओगे
तुम! फिर पास हमारे
जी रहे थे और जी ही लेंगे
बिन तुम्हारे
पर!
भुला ना पायेंगे
वोह पल
जो बीते संग तुम्हारे
जाने वाले! इतना तो
बताते जाना
कब लौट कर आओगे
तुम! फिर पास हमारे
गुरुवार, 19 अगस्त 2010
Paisa yaan pyaar
पैसा याँ प्यार
सच है!
ज़रूरी है, जीवन में पैसा
पर पैसा ही ज़रूरी है
यह विचार कैसा?
चुन लो जो चुनना है
पर!
यह भी ख्वाब तुम्हारा अपना है
क्या चाहिए?
प्यार की गूँज यां पैसे की खनखनाहट
प्यार की ठंडक यां पैसे की गर्माहट
बांटो तो बढे
दिनों दिन प्यार का रंग
दूना चढ़े
पैसे में फिसलन है
हाथ में फिसलता है
जेब से खिसकता है
चाहत हो मन में इसकी अगर
तो सारा जीवन ही फिसलता है
प्यार और पैसा!!!
बिलकुल विरोधाभास है
भेद ना कर पाए जो इन दोनों में
उसका जीवन ही कास है
सच है!
ज़रूरी है, जीवन में पैसा
पर पैसा ही ज़रूरी है
यह विचार कैसा?
चुन लो जो चुनना है
पर!
यह भी ख्वाब तुम्हारा अपना है
क्या चाहिए?
प्यार की गूँज यां पैसे की खनखनाहट
प्यार की ठंडक यां पैसे की गर्माहट
बांटो तो बढे
दिनों दिन प्यार का रंग
दूना चढ़े
पैसे में फिसलन है
हाथ में फिसलता है
जेब से खिसकता है
चाहत हो मन में इसकी अगर
तो सारा जीवन ही फिसलता है
प्यार और पैसा!!!
बिलकुल विरोधाभास है
भेद ना कर पाए जो इन दोनों में
उसका जीवन ही कास है
Jeevan ka ytharth
जीवन का यथार्थ
जी रहे हैं जो यहाँ, उन्हें मौत का इंतज़ार है
मर रहे है जो उन्हें एक श्वास की आस है
जो मिला वह व्यर्थ है, जो ना मिले वह अर्थ है
समेट लूं यह विश्व सारा इसमे क्या अनर्थ है
तू समझ इस प्राण के अभिसार को ऐ ना-समझ
पी चुके भर-भर समंदर फिर भी लकिन प्यास है
ना है अपरिचित और ना ही कुछ विस्मृत हुआ
देख अपना हाल मन स्वयं से अचंभित हुआ
पा लिया सब कुछ मगर एक फांस सी चुभती रही
जीत चुके अब जगत सारा, इस जीत पर ही त्रास है
जी रहे हैं जो यहाँ, उन्हें मौत का इंतज़ार है
मर रहे है जो उन्हें एक श्वास की आस है
जो मिला वह व्यर्थ है, जो ना मिले वह अर्थ है
समेट लूं यह विश्व सारा इसमे क्या अनर्थ है
तू समझ इस प्राण के अभिसार को ऐ ना-समझ
पी चुके भर-भर समंदर फिर भी लकिन प्यास है
ना है अपरिचित और ना ही कुछ विस्मृत हुआ
देख अपना हाल मन स्वयं से अचंभित हुआ
पा लिया सब कुछ मगर एक फांस सी चुभती रही
जीत चुके अब जगत सारा, इस जीत पर ही त्रास है
Trishnaay jeevan ki
तृष्णा जीवन की
भटकाती रहती हैं तृष्णाए जीवन की
फिर भी हसरत बाकी
हद है पागलपन की
सुख बोया दुःख काटा
हर सौदे में घाटा
सारा विष पी कर भी
मैंने अमृत बांटा
भटकाती रहती है
इच्छाए जीवन की
फिर भी हसरत बाकी
हद है पागल-पन की
भटकाती रहती हैं तृष्णाए जीवन की
फिर भी हसरत बाकी
हद है पागलपन की
सुख बोया दुःख काटा
हर सौदे में घाटा
सारा विष पी कर भी
मैंने अमृत बांटा
भटकाती रहती है
इच्छाए जीवन की
फिर भी हसरत बाकी
हद है पागल-पन की
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
Akelaa
अकेला
मन कितना आज अकेला
पीड़ाओं की गठरी भारी
दूर लगा है मेला
आशाएं दम तोड़ चुकीं हैं
आजीवन संग छोड़ चुकीं हैं
मरघट सा खामोश हुआ है
यह जीवन का रेला
मन कितना आज अकेला
हास और परिहास है झूठे
बिछड़े सब और टूटे सपनें
मन का हारिल नीलगगन में
उड़ता गेला गेला
मन कितना आज अकेला
मन कितना आज अकेला
पीड़ाओं की गठरी भारी
दूर लगा है मेला
आशाएं दम तोड़ चुकीं हैं
आजीवन संग छोड़ चुकीं हैं
मरघट सा खामोश हुआ है
यह जीवन का रेला
मन कितना आज अकेला
हास और परिहास है झूठे
बिछड़े सब और टूटे सपनें
मन का हारिल नीलगगन में
उड़ता गेला गेला
मन कितना आज अकेला
रविवार, 15 अगस्त 2010
vrishti
वृष्टि
टापुर टुपुर वृष्टि पड़े
पपीहा पीयू बोल उठे
लगी सावान की यह झड़ी
क्यों पिया से दूर पड़ी
पिया गए हैं विदेश
भेजा पांति ना सन्देश
आयी मिलने की घडी
उठे तन में क्लेश
सुन दामिनी की चाप
बड़े मन में संताप
छाये घटा घनघोर
विरह का ना कोए छोर
वृष्टि की टप-टप
देती विरह की ताल
जैसे अंसुवन सींचे
राग मेघ मल्हार
टापुर टुपुर वृष्टि पड़े
पपीहा पीयू बोल उठे
लगी सावान की यह झड़ी
क्यों पिया से दूर पड़ी
पिया गए हैं विदेश
भेजा पांति ना सन्देश
आयी मिलने की घडी
उठे तन में क्लेश
सुन दामिनी की चाप
बड़े मन में संताप
छाये घटा घनघोर
विरह का ना कोए छोर
वृष्टि की टप-टप
देती विरह की ताल
जैसे अंसुवन सींचे
राग मेघ मल्हार
pyaar
प्यार
प्यार का कोई नाम नहीं, प्यार का परिमाप नहीं
प्यार की कोई सीमा नहीं, बिन प्यार जीना नहीं
प्यार एक भक्ति है
सूर मीरा तुलसी की शांत अभिव्यक्ति है
प्यार आसक्ति है
मनोबल बढाती है, विषमता में जीना सिखलाती है
मोहन की राधा सी , आह्लाह्दिनी शक्ति है
प्यार सखा भाव है
कृष्ण की सुदामा को ,त्याग के सुख की छाँव है
प्यार माँ की ममता है
मरुथल की तपन में देती शीतलता है
प्यार गुरु की गुरुता है
देख कच्ची शिष्य नीवं , देती उसे दृढ़ता है
क्या प्यार एक वासना है?
नहीं, कामदेव से वन्दित एक सशक्त उपासना है
सृजन का यह रूप है , सार्थकता लिए जीवन में
एक सुनहरी धूप है
प्यार एक भावना है जो दिल से दिल को पिरोती है
सब एक माला के मोती हो , ऐसे सपने संजोती है
प्यार का कोई नाम नहीं, प्यार का परिमाप नहीं
प्यार की कोई सीमा नहीं, बिन प्यार जीना नहीं
प्यार एक भक्ति है
सूर मीरा तुलसी की शांत अभिव्यक्ति है
प्यार आसक्ति है
मनोबल बढाती है, विषमता में जीना सिखलाती है
मोहन की राधा सी , आह्लाह्दिनी शक्ति है
प्यार सखा भाव है
कृष्ण की सुदामा को ,त्याग के सुख की छाँव है
प्यार माँ की ममता है
मरुथल की तपन में देती शीतलता है
प्यार गुरु की गुरुता है
देख कच्ची शिष्य नीवं , देती उसे दृढ़ता है
क्या प्यार एक वासना है?
नहीं, कामदेव से वन्दित एक सशक्त उपासना है
सृजन का यह रूप है , सार्थकता लिए जीवन में
एक सुनहरी धूप है
प्यार एक भावना है जो दिल से दिल को पिरोती है
सब एक माला के मोती हो , ऐसे सपने संजोती है
gungunaayen geet koyee
गुनगुनाएं गीत कोई
आओ छेड़ें साज-ए- दिल
एक नयी सरगम बनाए
भूल जाएँ सारे दुःख को
हर्ष का छंद गुनगुनाएं
जिंदगी तो बेवफा है
ना बावफा समझो इसे
रास्ते में फूल ओ' कांटे
जो भी चाहे चुन ले इसे
साफ़ करके मार्ग कंटक
फूल राहों में बिछाएं
हो उजाला नव सृजन का
प्यार का दीपक जलाएं
स्वप्पन बनते और मिटते
क्यों भला कैसे भला
नव रंगों से जीवन चित्रित
है जीवन की अजब कला
आयो समझे जीवन मिश्रण
धूप छाँव से है बना
दुखों की ढलती संध्या में
सुख के सूरज से जला
आओ छेड़ें साज-ए- दिल
एक नयी सरगम बनाए
भूल जाएँ सारे दुःख को
हर्ष का छंद गुनगुनाएं
जिंदगी तो बेवफा है
ना बावफा समझो इसे
रास्ते में फूल ओ' कांटे
जो भी चाहे चुन ले इसे
साफ़ करके मार्ग कंटक
फूल राहों में बिछाएं
हो उजाला नव सृजन का
प्यार का दीपक जलाएं
स्वप्पन बनते और मिटते
क्यों भला कैसे भला
नव रंगों से जीवन चित्रित
है जीवन की अजब कला
आयो समझे जीवन मिश्रण
धूप छाँव से है बना
दुखों की ढलती संध्या में
सुख के सूरज से जला
Talaash
तलाश
एक जीवन
जो जीवंत हुआ
उसके आने से
आज मृत हुआ
उसके जाने से
सन्नाटा है
खामोशी है
चहु और वीराना है
उजड़ा चमन
टूटा आशियाना है
क्यों आये तुम
जब दूर तुम्हे जाना था
अपने पन का प्रपंच क्यों
जब रहना ही बेगाना था
कोरे कागज़ पर
लिख कर
कुछ तदबीर तुमने
बदल ही डाली
हाथ की लकीर तुमने
ना लौट कर आयोगे
मालूम है हमको भी
ना जाने क्यों
तलाशते हैं
हम तुम को ही
एक जीवन
जो जीवंत हुआ
उसके आने से
आज मृत हुआ
उसके जाने से
सन्नाटा है
खामोशी है
चहु और वीराना है
उजड़ा चमन
टूटा आशियाना है
क्यों आये तुम
जब दूर तुम्हे जाना था
अपने पन का प्रपंच क्यों
जब रहना ही बेगाना था
कोरे कागज़ पर
लिख कर
कुछ तदबीर तुमने
बदल ही डाली
हाथ की लकीर तुमने
ना लौट कर आयोगे
मालूम है हमको भी
ना जाने क्यों
तलाशते हैं
हम तुम को ही
yaad tumhari
याद तुम्हारी
शाम ढले जब नील गगन में
हौले से चंदा मुस्काये
याद तुम्हारी संग पवन के
बिना पंख उड़ कर आ जाए
मन के नभ में याद के बादल
उमड़ घुमड़ कर घिर आते हैं
जलकन जैसे नन्हे संस्मरण
शुष्क बदन को नम करते हैं
रात ढले जब तरन ताल पर
नवल चांदनी रस बरसाए
याद तुम्हारी निशिगंधा सी
मेरा मन आँगन महकाए
शाम ढले जब नील गगन में
हौले से चंदा मुस्काये
याद तुम्हारी संग पवन के
बिना पंख उड़ कर आ जाए
मन के नभ में याद के बादल
उमड़ घुमड़ कर घिर आते हैं
जलकन जैसे नन्हे संस्मरण
शुष्क बदन को नम करते हैं
रात ढले जब तरन ताल पर
नवल चांदनी रस बरसाए
याद तुम्हारी निशिगंधा सी
मेरा मन आँगन महकाए
piya se
पिया से!
सखी री! मेरे नैना नीर भरे
कारे बदरा घिर घिर आये
सावन के झूले पड़े
कैसे बढ़ाऊं प्रेम की पींगे
सैया है मोसे लड़े
मोरे नैना नीर भरे
काल रात्रि हुई शरद पूर्णिमा
विधु अंगार बने
साज श्रिंगार वृथा लगत सब
कंटक सेज सजे
मोरे नैना नीर भरे
वासन वासंती, रूप सांवरा
कुंडल कान धरे
पिया मोरे मोहि सुधि लीजो
कर जोरे अरज करें
मोरे नैना नीर भरे
सखी री! मेरे नैना नीर भरे
कारे बदरा घिर घिर आये
सावन के झूले पड़े
कैसे बढ़ाऊं प्रेम की पींगे
सैया है मोसे लड़े
मोरे नैना नीर भरे
काल रात्रि हुई शरद पूर्णिमा
विधु अंगार बने
साज श्रिंगार वृथा लगत सब
कंटक सेज सजे
मोरे नैना नीर भरे
वासन वासंती, रूप सांवरा
कुंडल कान धरे
पिया मोरे मोहि सुधि लीजो
कर जोरे अरज करें
मोरे नैना नीर भरे
shela re
सहेला रे
आ मिल जुल गायें
जन्म मरण का साथ ना भूले
अब के बिछड़े रहा नहीं जाए
सहेला रे!
आ कदम बढायें
विचलित हो पग , पथ ना भूलें
बन संरंक्षक रह दिखाएँ
सहेला रे!
आ हाथ मिलाएं
जीवन की अंतिम वेला तक
सुख दुःख बांटे वचन निभाएं
आ मिल जुल गायें
जन्म मरण का साथ ना भूले
अब के बिछड़े रहा नहीं जाए
सहेला रे!
आ कदम बढायें
विचलित हो पग , पथ ना भूलें
बन संरंक्षक रह दिखाएँ
सहेला रे!
आ हाथ मिलाएं
जीवन की अंतिम वेला तक
सुख दुःख बांटे वचन निभाएं
vire vedna
विरह वेदना
अंसुवन से गीली धरती पर
बिलख रहे हैं मेरे गीत
मद्धम होने लगा सुनो तो
मेरी साँसों का संगीत
विरह की अग्नि में जल कर
भस्म हो गयी कंचन काया
बार एक यह बतला दो
कब आओगे मन के मीत
संग मरण के बुने जो सपने
सांस तोड़ते सिसके-सिसके
तुम आओ तो जीवन जी लूं
चुपके कहती अनबोली प्रीत
गुंजन करती यह ख़ामोशी
मन को समझाये बारम्बार
रच डालें संसार नया एक
ना निभ पाए इस जग की रीत
अंसुवन से गीली धरती पर
बिलख रहे हैं मेरे गीत
मद्धम होने लगा सुनो तो
मेरी साँसों का संगीत
विरह की अग्नि में जल कर
भस्म हो गयी कंचन काया
बार एक यह बतला दो
कब आओगे मन के मीत
संग मरण के बुने जो सपने
सांस तोड़ते सिसके-सिसके
तुम आओ तो जीवन जी लूं
चुपके कहती अनबोली प्रीत
गुंजन करती यह ख़ामोशी
मन को समझाये बारम्बार
रच डालें संसार नया एक
ना निभ पाए इस जग की रीत
chalo le chalo
चलो ले चलो
सागर में उठत हिलोर
ओरे मांझी !
खेवो मोरी नैया
चलो ले चलो तट की और
घिर आये बदरा
कारे कजरारे
छिप गया दिनकर
भागे उजियारे
फ़ैला तिमिर चहुं और
चलो रे चलो
ले चलो तट की और
आशंकित मनवा
आस लगाये
पंथ निहारे
नयन बिछाए
देखे पूरब की और
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
दूर क्षितज़ में
पंख फैलाए
आशा का एक दीप जलाए
बाट ताकत है चकोर
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
दुखियारा मेरा
मन मुरझाये
पिया मिलने को
तडपत हाय
जैसे पतंग संग डोर
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
सागर में उठत हिलोर
ओरे मांझी !
खेवो मोरी नैया
चलो ले चलो तट की और
घिर आये बदरा
कारे कजरारे
छिप गया दिनकर
भागे उजियारे
फ़ैला तिमिर चहुं और
चलो रे चलो
ले चलो तट की और
आशंकित मनवा
आस लगाये
पंथ निहारे
नयन बिछाए
देखे पूरब की और
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
दूर क्षितज़ में
पंख फैलाए
आशा का एक दीप जलाए
बाट ताकत है चकोर
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
दुखियारा मेरा
मन मुरझाये
पिया मिलने को
तडपत हाय
जैसे पतंग संग डोर
चलो ले चलो
ले चलो तट की और
kam ka kam hai pending hona
काम का काम है पेंडिंग होना
दिन भर क्यों है काम का रोना
काम का काम है पेंडिंग होना
यूं कब तक श्रम करे कोई
यूं कब तक व्यस्त रहे कोई
हरी की कमल नाभ से लम्बे
कैसे काम को ख़तम करे कोई
काम का स्वामी काम देव
जिसको संहारे महादेव
काम का प्याला पी ले जो
भूले सारे जग के भेद
ना दिनमें चैन ना रात में निद्रा
धारण करता मन व्याकुल मुद्रा
प्रयतन करने का काम नियंत्रण
विफल हुआ जाता मानव प्रण
साकाम और निष्काम का भेद
जब करे अंतर्मन तो मिटे क्लेश
इस काम और उस काम का अंतर
जो कर पाए वह सिद्ध योगी वेश
काम गलत तो हुए नाकाम
काम सही तो कामयाब
महिमा जिस की गाये हरी, राम
जो नर समझे वह हुआ नायाब
दिन भर क्यों है काम का रोना
काम का काम है पेंडिंग होना
यूं कब तक श्रम करे कोई
यूं कब तक व्यस्त रहे कोई
हरी की कमल नाभ से लम्बे
कैसे काम को ख़तम करे कोई
काम का स्वामी काम देव
जिसको संहारे महादेव
काम का प्याला पी ले जो
भूले सारे जग के भेद
ना दिनमें चैन ना रात में निद्रा
धारण करता मन व्याकुल मुद्रा
प्रयतन करने का काम नियंत्रण
विफल हुआ जाता मानव प्रण
साकाम और निष्काम का भेद
जब करे अंतर्मन तो मिटे क्लेश
इस काम और उस काम का अंतर
जो कर पाए वह सिद्ध योगी वेश
काम गलत तो हुए नाकाम
काम सही तो कामयाब
महिमा जिस की गाये हरी, राम
जो नर समझे वह हुआ नायाब
ek inch maryaadaa
एक इंच मर्यादा
गिरी के हिम शिखरों पर फैली सुनहरी धूप
नभ में उमड़ घुमड़ते रस छलकाते पानी के कूप
संध्या काल में पानी की गोद में डूबता सूरज
कुसुमावालियों पर चमकते नन्हे पानी के जलकन
जैसे तुम्हारा यह रूप
और इसे छू लेने की कामना
और तुम्हारा भी यूं व्याकुल हो
प्रकृति की तरह मुझ अम्बर में समाना
शायद हो ना पायेगा कभी संभव
क्योंकि इन के बीच फांसला है
एक इंच मर्यादा का
जिसे तोड़ने का साहस
ना तुम में है
और ना मुझ में
गिरी के हिम शिखरों पर फैली सुनहरी धूप
नभ में उमड़ घुमड़ते रस छलकाते पानी के कूप
संध्या काल में पानी की गोद में डूबता सूरज
कुसुमावालियों पर चमकते नन्हे पानी के जलकन
जैसे तुम्हारा यह रूप
और इसे छू लेने की कामना
और तुम्हारा भी यूं व्याकुल हो
प्रकृति की तरह मुझ अम्बर में समाना
शायद हो ना पायेगा कभी संभव
क्योंकि इन के बीच फांसला है
एक इंच मर्यादा का
जिसे तोड़ने का साहस
ना तुम में है
और ना मुझ में
chait chandni
चैत चांदनी
यह चैत चांदनी कहती है
आओ हम दोनों साथ चलें
हाथों में डालें हाथ चलें
कुछ तुम ना कहो
कुछ हम ना कहें
ऐसी कोई बात करें
यह चैत चांदनी कहती है
आओ हम दोनों साथ चलें
हाथों में डालें हाथ चलें
कुछ तुम ना कहो
कुछ हम ना कहें
ऐसी कोई बात करें
kartvay bodh
कर्तव्य बोध
उठो वत्स कर्तव्य निष्ठ हो
यूं कब तक शौक मनाओ गे
उड़ा जा रहा वक़्त पंख बिन
कैसे लौटा कर लाओगे
बीता पल जो वह कल था
पल आने वाला फिर कल होगा
कल और कल की चिंता में
इस पल का चिंतन कब होगा
नियति का यूं मान फैंसला
कब तक ठोकर खाओगे
उठो बढ़ो कर्तव्य निष्ठ हो
स्वयमेव सिद्ध हो जाओगे
उठो वत्स कर्तव्य निष्ठ हो
यूं कब तक शौक मनाओ गे
उड़ा जा रहा वक़्त पंख बिन
कैसे लौटा कर लाओगे
बीता पल जो वह कल था
पल आने वाला फिर कल होगा
कल और कल की चिंता में
इस पल का चिंतन कब होगा
नियति का यूं मान फैंसला
कब तक ठोकर खाओगे
उठो बढ़ो कर्तव्य निष्ठ हो
स्वयमेव सिद्ध हो जाओगे
mera geet diya ban jaaye
मेरा गीत दिया बन जाए
अंधियारा जिस से शरमाये
उजिआरा जिस को ललचाये
ऐसा देदो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दिया बन जाए
इतने अश्रू दो मुझको
हर राहगीर के चरण धो सकूं
इतना निर्धन करो
हर दरवाज़े पर सब खो सकूं
ऐसी पीर भरो प्राणों में
नींद आये ना जन्म-जनम तक
इतनी सुध-बुध हरो
सांवरिया खुद बांसुरी बन जाए
ऐसा देदो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दिया बन जाए
अंधियारा जिस से शरमाये
उजिआरा जिस को ललचाये
ऐसा देदो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दिया बन जाए
इतने अश्रू दो मुझको
हर राहगीर के चरण धो सकूं
इतना निर्धन करो
हर दरवाज़े पर सब खो सकूं
ऐसी पीर भरो प्राणों में
नींद आये ना जन्म-जनम तक
इतनी सुध-बुध हरो
सांवरिया खुद बांसुरी बन जाए
ऐसा देदो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दिया बन जाए
prem ki saankal
प्रेम की सांकल
मन के द्वारे
प्रेम की सांकल
तुम आओ तो खोलूँ
रजनी का आँचल लहराय
सारा आलम जब सो जाए
अमवा डाली डाल हिंडोल
संग तुम्हारे डोलूँ
वीणा स्वर मंजरियाँ चुप हैं
गीतों की धुन गुम-सुम गुम-सुम
प्रेम मजुषा आसव पी कर
मधुकर गुंजन बोलूँ
मृत अंतस हो जीवन सिंचित
संचारित नव चेतंताय
पूरण परम पद पा जायूं
एक बार तुम्हे हो लूं
मन के द्वारे
प्रेम की सांकल
तुम आओ तो खोलूँ
रजनी का आँचल लहराय
सारा आलम जब सो जाए
अमवा डाली डाल हिंडोल
संग तुम्हारे डोलूँ
वीणा स्वर मंजरियाँ चुप हैं
गीतों की धुन गुम-सुम गुम-सुम
प्रेम मजुषा आसव पी कर
मधुकर गुंजन बोलूँ
मृत अंतस हो जीवन सिंचित
संचारित नव चेतंताय
पूरण परम पद पा जायूं
एक बार तुम्हे हो लूं
kh maa
कह माँ
नाना हम से क्यों रूठे हैं
तोता मैना के किस्से कहते
चिरिया बुलबुल की बातें करते
कैसे चुप हो कर बैठे hain
पल्लू से पोंछी भीगी पलकें
बालक को बाहों में भर के
आसमान में इंगित करके
मां बोली फिर साहस भर के
सप्त ऋषि के पीछे चमके
आसमान में जो सुंदर तारा
वही तो हो विश्वाश हमारा
तेरा नाना अब सब का प्यारा
नाना हम से क्यों रूठे हैं
तोता मैना के किस्से कहते
चिरिया बुलबुल की बातें करते
कैसे चुप हो कर बैठे hain
पल्लू से पोंछी भीगी पलकें
बालक को बाहों में भर के
आसमान में इंगित करके
मां बोली फिर साहस भर के
सप्त ऋषि के पीछे चमके
आसमान में जो सुंदर तारा
वही तो हो विश्वाश हमारा
तेरा नाना अब सब का प्यारा
kaise tum ko paanoo
कैसे तुम को पाऊँ
कैसे ढूँढू कहाँ जाऊ
तुम्ही कहो , तुम्हे कैसे पाऊ
ढूंढें मैंने स्थान वह सारे
जहां बीते जीवन संग तुम्हारे
सूना घर आँगन वन उपवन
सूना मन का है नंदनवन
कैसे अब तुम्हरी सुधि पाऊ
कैसे ढूँढू , कहाँ जाऊ
किस से करूंगी क्षमा-याचना
किसको मैं अब दूं निमंत्रण
कौन पूछेगा प्रश्न व्यथा के
कौन करेगा उत्साह वर्धन
कैसे इस मन को समझाऊँ
तुम्ही कहो तुम्हे कैसे पाऊँ
जब विदा किया पर साल था तुमने
लिया था वादा अंक मैं भर के
पुनह लौट कर जब भी आना
आना मेरे ही द्वारे सज के
विस्मित खड़ी आज चौराहे पर
हुई अचंभित किस दिशी जाऊं
कैसे ढूँढू कहाँ जाऊ
तुम्ही कहो तुम्हे कैसे पाऊँ
कैसे ढूँढू कहाँ जाऊ
तुम्ही कहो , तुम्हे कैसे पाऊ
ढूंढें मैंने स्थान वह सारे
जहां बीते जीवन संग तुम्हारे
सूना घर आँगन वन उपवन
सूना मन का है नंदनवन
कैसे अब तुम्हरी सुधि पाऊ
कैसे ढूँढू , कहाँ जाऊ
किस से करूंगी क्षमा-याचना
किसको मैं अब दूं निमंत्रण
कौन पूछेगा प्रश्न व्यथा के
कौन करेगा उत्साह वर्धन
कैसे इस मन को समझाऊँ
तुम्ही कहो तुम्हे कैसे पाऊँ
जब विदा किया पर साल था तुमने
लिया था वादा अंक मैं भर के
पुनह लौट कर जब भी आना
आना मेरे ही द्वारे सज के
विस्मित खड़ी आज चौराहे पर
हुई अचंभित किस दिशी जाऊं
कैसे ढूँढू कहाँ जाऊ
तुम्ही कहो तुम्हे कैसे पाऊँ
dil to hai dil
दिल तो है दिल
दिल तो आखिर दिल ही रहेगा
हो तुम दूर ,पर पास हो मेरे
कैसे यह विश्वास करेगा
छू लेते बस हाथ तुम्हारा
जीवन भर यह त्रास रहेगा
संग तुम्हारे बीतें पल फिर
जन्मान्तर तक आस करेगा
पुनह छोड़ कर ना जाओ गे
ऐसा क्या परिहास करेगा ?
दिल तो आखिर दिल ही रहेगा
दिल तो आखिर दिल ही रहेगा
हो तुम दूर ,पर पास हो मेरे
कैसे यह विश्वास करेगा
छू लेते बस हाथ तुम्हारा
जीवन भर यह त्रास रहेगा
संग तुम्हारे बीतें पल फिर
जन्मान्तर तक आस करेगा
पुनह छोड़ कर ना जाओ गे
ऐसा क्या परिहास करेगा ?
दिल तो आखिर दिल ही रहेगा
swappan main papa
स्वप्पन में पापा
रात स्वप्पन मे आकर सहसा
तुमने जो आवाज़ लगाई
अर्धचेतन विक्षिप्त अवस्था से
जैसे मैंने सुधि पाई
ब्रह्म अनामय रूप निरख कर
ज्ञान विधा विधुत लहराई
परम तत्त्व में हों विलीन हम
जीवन भर इच्छा यही पाई
काल चक्र से हुआ मुक्त जब
क्यों मन देने लगा दुहाई
ना हो क्षोभित ना हो व्याकुल
अब ना कर मन को यूं सौदाई
उठो बढ़ो जियो वर्तमान में
श्रम तप धीरज की बात दोहराई
अवसादों का वसन हटा कर
खुशियों की चादर औडाई
अकस्मात फिर टूटी तंत्रा
टूटा स्वप्पन खुल गयी निद्रा
रस से सराबोर था तन मन
और ना था अब धूमिल जीवन
तुम्हे अंगीकार किया ईश्वर ने
जान बहुत मैंने सुख पाया
बहुत दिनों से निद्रालु था
पुनह निद्रा के अंक समाया
रात स्वप्पन मे आकर सहसा
तुमने जो आवाज़ लगाई
अर्धचेतन विक्षिप्त अवस्था से
जैसे मैंने सुधि पाई
ब्रह्म अनामय रूप निरख कर
ज्ञान विधा विधुत लहराई
परम तत्त्व में हों विलीन हम
जीवन भर इच्छा यही पाई
काल चक्र से हुआ मुक्त जब
क्यों मन देने लगा दुहाई
ना हो क्षोभित ना हो व्याकुल
अब ना कर मन को यूं सौदाई
उठो बढ़ो जियो वर्तमान में
श्रम तप धीरज की बात दोहराई
अवसादों का वसन हटा कर
खुशियों की चादर औडाई
अकस्मात फिर टूटी तंत्रा
टूटा स्वप्पन खुल गयी निद्रा
रस से सराबोर था तन मन
और ना था अब धूमिल जीवन
तुम्हे अंगीकार किया ईश्वर ने
जान बहुत मैंने सुख पाया
बहुत दिनों से निद्रालु था
पुनह निद्रा के अंक समाया
kaise likhoon
कैसे लिखूं
उर की बात कहूं कैसे
कैसे जिह्वा तक लायूं मैं
कैसे झेलूँ मन संताप
कैसे मन को समझाऊँ मैं
निज रोदन को राग बनाया
तार सप्तक से स्वर मिलाया
हृदय वेदना कम करने को
नयनों ने फिर नीर बहाया
कंठ हुया अवरुद्ध जान
भावों को लेखन ने संभाला
भावों की पीड़ा को अनुभव कर
लेखन भी निस्तेज हो गया
अब तुम्ही कहो मैं कैसे लिखूं
उर की बात कहूं कैसे
कैसे जिह्वा तक लायूं मैं
कैसे झेलूँ मन संताप
कैसे मन को समझाऊँ मैं
निज रोदन को राग बनाया
तार सप्तक से स्वर मिलाया
हृदय वेदना कम करने को
नयनों ने फिर नीर बहाया
कंठ हुया अवरुद्ध जान
भावों को लेखन ने संभाला
भावों की पीड़ा को अनुभव कर
लेखन भी निस्तेज हो गया
अब तुम्ही कहो मैं कैसे लिखूं
rachna
रचना
जब शांत धरा का कोलाहल
मन को उकसाने लगता है
जब शांत गिरी का आँचल भी
वज्र गिराने लगता है
पानी की नन्ही बूंदों पर
तूफ़ान मचलने लगता है
तब वैरागी पागल मन
कविता रचने लगता है
जब शांत धरा का कोलाहल
मन को उकसाने लगता है
जब शांत गिरी का आँचल भी
वज्र गिराने लगता है
पानी की नन्ही बूंदों पर
तूफ़ान मचलने लगता है
तब वैरागी पागल मन
कविता रचने लगता है
aansoo nahi to aur kya hai
आंसू नहीं तो और क्या है
शांत धरा के अंतस में
भावों के बिखरे कुण्डों से
जब पानी के चश्मे बहते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
उत्कंठित धीर गगन से जब
नीरद वृष्टि करता है
पानी की नन्ही वह बूंदे
आंसू नहीं तो और क्या है
सुडोल गिरी के अंचल से
अंतर्मन से स्रावित हो
जब निर्झर फूटा करते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
मानव मन का ज्वाला मुखी
अवसादों का लावा लेकर
जब आँखों से बहता है
वह आंसू नहीं तो और क्या है
शांत धरा के अंतस में
भावों के बिखरे कुण्डों से
जब पानी के चश्मे बहते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
उत्कंठित धीर गगन से जब
नीरद वृष्टि करता है
पानी की नन्ही वह बूंदे
आंसू नहीं तो और क्या है
सुडोल गिरी के अंचल से
अंतर्मन से स्रावित हो
जब निर्झर फूटा करते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
मानव मन का ज्वाला मुखी
अवसादों का लावा लेकर
जब आँखों से बहता है
वह आंसू नहीं तो और क्या है
aansoo maun ho gya
और मेरा आंसू मौन हो गया
दिल जब पिघला, आँखों से निकला
गालों पर आकर गौण हो गया
मेरा आंसू मौन हो गया
हर आँगन सूना सूना सा
हर वीथि रीती रीती सी
हर दस्तक सहमा सहमा सा
हर आहट फीकी फीकी सी
बंधन छूटे रिश्ते झूठे
प्यार के धागे बेबस हो टूटे
एक दूजे पर आश्रित प्राणी
सहसा रिश्ते में कौन हो गया
मेरा आंसू मौन हो गया
दिल जब पिघला, आँखों से निकला
गालों पर आकर गौण हो गया
मेरा आंसू मौन हो गया
हर आँगन सूना सूना सा
हर वीथि रीती रीती सी
हर दस्तक सहमा सहमा सा
हर आहट फीकी फीकी सी
बंधन छूटे रिश्ते झूठे
प्यार के धागे बेबस हो टूटे
एक दूजे पर आश्रित प्राणी
सहसा रिश्ते में कौन हो गया
मेरा आंसू मौन हो गया
Tum kya jaano hridye ki peeda
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
तुम ने तो उन्मुक्त गगन में
कलरव करते देखे पक्षी
दिन भर करते क्रीडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो खग कैसे सोता
क्या जानो खग कैसे रोता
कहीं दूर वह दाना चुगने
दिन भर उड़ता फुगने फुगने
सांझ ढले तो चले चाँद संग
ढूंढें अपना नीड़ा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो मिलने को तड़पे
क्या जानो वह मिल कर तड़पे
सारा दिन वह व्याकुल रहता
हर आहट पर चौंक के उठता
चौंच उठाये वह राहें तकता
भूले अपनी ईडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
तुम ने तो उन्मुक्त गगन में
कलरव करते देखे पक्षी
दिन भर करते क्रीडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो खग कैसे सोता
क्या जानो खग कैसे रोता
कहीं दूर वह दाना चुगने
दिन भर उड़ता फुगने फुगने
सांझ ढले तो चले चाँद संग
ढूंढें अपना नीड़ा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
क्या जानो मिलने को तड़पे
क्या जानो वह मिल कर तड़पे
सारा दिन वह व्याकुल रहता
हर आहट पर चौंक के उठता
चौंच उठाये वह राहें तकता
भूले अपनी ईडा
तुम क्या जानो हृदय की पीड़ा
kho gya re mera bachpan
खो गया रे मेरा बचपन
तुम क्या रूठे ,सब जग रूठा
पीहर से भी नाता छूटा
देख विषमता मनोबल टूटा
कैसी यह जीवन की उलझन
खो गया रे मेरा बचपन
आज फूल भी लगे शूल सा
तप्त लगें नम हवा के झोंके
सब के गल का फांस बन गयी
जो थी हर एक दिल की धड़कन
खो गया रे मेरा बचपन
काल चक्र यूं चलता जाए
अमिट छाप यूं गढ़ता जाए
मस्तक की धुंधली रेखाएं
होने ना देती परिवर्तन
खो गया रे मेरा बचपन
तुम क्या रूठे ,सब जग रूठा
पीहर से भी नाता छूटा
देख विषमता मनोबल टूटा
कैसी यह जीवन की उलझन
खो गया रे मेरा बचपन
आज फूल भी लगे शूल सा
तप्त लगें नम हवा के झोंके
सब के गल का फांस बन गयी
जो थी हर एक दिल की धड़कन
खो गया रे मेरा बचपन
काल चक्र यूं चलता जाए
अमिट छाप यूं गढ़ता जाए
मस्तक की धुंधली रेखाएं
होने ना देती परिवर्तन
खो गया रे मेरा बचपन
शनिवार, 14 अगस्त 2010
aansoo ban gye pathar
आंसू बन गये पत्थर
सूख गया आशा का समुंदर
आंसू बन गए पत्थर
सूनी आँखें पंथ निहारें
कब तक बोलो कब तक
पिक का पंचम मौन हुआ है
सन्नाटा बगिया में छाया
सूखे बौर अमवा मुरझाया
नीरज मुख कैसे कुह्म्लाया
स्नेह सुधा को मन तरसाए
चातक मन भी आस लगाए
शुष्क धरा की प्यास बुझेगी
बरसो मेहां बन कर
कब तक बोलो कब तक
सूख गया आशा का समुंदर
आंसू बन गए पत्थर
सूनी आँखें पंथ निहारें
कब तक बोलो कब तक
पिक का पंचम मौन हुआ है
सन्नाटा बगिया में छाया
सूखे बौर अमवा मुरझाया
नीरज मुख कैसे कुह्म्लाया
स्नेह सुधा को मन तरसाए
चातक मन भी आस लगाए
शुष्क धरा की प्यास बुझेगी
बरसो मेहां बन कर
कब तक बोलो कब तक
chalo phir ho jaayen ajnabi
चलो फिर हो जाएँ अजनबी
क्यों पकड़ने की कोशिश करते हैं
हाथ पानी को
जानते हैं नहीं है वोह सत्य
फिर भी करते हैं वोह यतन
करने को यथार्थ एक झूठी कहानी को
तुम ना थे कभी अपने
और ना ही होगे
फिर भी क्यों दोहराते हैं बात पुरानी को
चलो फिर हो जाएँ अजनबी
और देखें कुछ इस तरह
एक दूजे को , जैसे देखे कोई दरिया
अपनी मौजों की रवानी को
क्यों पकड़ने की कोशिश करते हैं
हाथ पानी को
जानते हैं नहीं है वोह सत्य
फिर भी करते हैं वोह यतन
करने को यथार्थ एक झूठी कहानी को
तुम ना थे कभी अपने
और ना ही होगे
फिर भी क्यों दोहराते हैं बात पुरानी को
चलो फिर हो जाएँ अजनबी
और देखें कुछ इस तरह
एक दूजे को , जैसे देखे कोई दरिया
अपनी मौजों की रवानी को
aansoo
आंसू
कब दर्द बना
और रुदन हुआ
कब छंद बना
और गीत हुआ
कब स्वर हुआ
और राग बना
कब मौत बना
और मौन हुआ
कब दर्द बना
और रुदन हुआ
कब छंद बना
और गीत हुआ
कब स्वर हुआ
और राग बना
कब मौत बना
और मौन हुआ
aankhon se aansoo
आँखों से आंसू छलके ऐसे
सागर तट पर
बिखरे मोती जैसे
बिछरण की तड़पन
से बोझिल
शाख से पत्ते गिरते जैसे
अगन वेदना से पीड़ित हो
वर्तिका जल जल कर पिघले जैसे
कैसे होगा जीवन तुम बिन
कैसे जानू , कैसे समझूं
कल्पना भी मुझसे
रूठी ऐसे
सागर तट पर
बिखरे मोती जैसे
बिछरण की तड़पन
से बोझिल
शाख से पत्ते गिरते जैसे
अगन वेदना से पीड़ित हो
वर्तिका जल जल कर पिघले जैसे
कैसे होगा जीवन तुम बिन
कैसे जानू , कैसे समझूं
कल्पना भी मुझसे
रूठी ऐसे
Ek Jeevan
एक जीवन !!
जो उदय हुया
सूर्य सा
चमकता रहा
अंत तक
और आज
सूर्यास्त के बाद भी
इस विकल रजनी में
अपनी आभा बिखराता रहा
चमक रहा ध्रुव तारे सा
देता हुया सन्देश
कि
जीवन में कभी रात भी हो तो
रौशनी ही रहती है
विश्वास की नैया जब भी डगमगाए तो
हाथ में आस की
पतवार ही रहती है
एक जीवन !!
देता है सीख
जादू जगाओ
तन को तपाओ
और गुनगुनाओ
हर एक पल तुम्हारा है
संकल्प का लंगर
डालो जहाज़ पर
फिर यह सारा जग
तुम से हारा है
एक जीवन!!
जो उदय हुया
सूर्य सा
चमकता रहा
अंत तक
और आज
सूर्यास्त के बाद भी
इस विकल रजनी में
अपनी आभा बिखराता रहा
चमक रहा ध्रुव तारे सा
देता हुया सन्देश
कि
जीवन में कभी रात भी हो तो
रौशनी ही रहती है
विश्वास की नैया जब भी डगमगाए तो
हाथ में आस की
पतवार ही रहती है
एक जीवन !!
देता है सीख
जादू जगाओ
तन को तपाओ
और गुनगुनाओ
हर एक पल तुम्हारा है
संकल्प का लंगर
डालो जहाज़ पर
फिर यह सारा जग
तुम से हारा है
एक जीवन!!
Kaash
काश !
कह पाते हम अपने मन की बात
आँखों में कट गयी
वोह काली रात
प्रयत्न करके सारे विफल
चल पड़े तुम अकेले ही
सफ़र पर
जीवन को देकर मात
काश! कह पाते हम अपने मन की बात
जानते हैं पग ना तुम्हारे थकें गें
ना लौटेगें पीछे
बस मंजिल पर ही धरेंगें
बढोगे अकेले
ना खोजोगे जमात
काश! कह पाते हम अपने मन की बात
कह पाते हम अपने मन की बात
आँखों में कट गयी
वोह काली रात
प्रयत्न करके सारे विफल
चल पड़े तुम अकेले ही
सफ़र पर
जीवन को देकर मात
काश! कह पाते हम अपने मन की बात
जानते हैं पग ना तुम्हारे थकें गें
ना लौटेगें पीछे
बस मंजिल पर ही धरेंगें
बढोगे अकेले
ना खोजोगे जमात
काश! कह पाते हम अपने मन की बात
Bechain Man
बेचैन मन
बेचैन मन
कहीं भी चैन
नहीं पाता है
प्रभु की सत्ता को नकारता
उस अस्तित्व को
यहाँ वहां खोजता है
जो चला गया है
ऐसी जगह
जहाँ से वापिस
कोई
लौट नहीं पाता है!!
बेचैन मन
कहीं भी चैन
नहीं पाता है
प्रभु की सत्ता को नकारता
उस अस्तित्व को
यहाँ वहां खोजता है
जो चला गया है
ऐसी जगह
जहाँ से वापिस
कोई
लौट नहीं पाता है!!
Main aisi thee
मैं ऐसी थी
स्वछंद गगन में विचरण करती
उन्मुक्त पवन से बातें करती
चंचल नदिया सी छल-छल बहती
धवल विधु सी बन इतराती
मैं ऐसी थी
मौसम बदला जीवन बदला
काल चक्र में उलझा पगला
पल प्रति पल को जीने वाला
संकुचा बंधन में जकड़ा पगला
धानी चूड़ी से छन-छन बजती
पग में पायल जैसी बजती
करघनी को पहन कमर में
गुच्छे में चाबी सी बंधती
मैं ऐसी थी
तप्त धरा को बादल ने मोहा
पारस ने जैसे छू लिया हो लोहा
छलक पड़े फिर रस के प्याले
अभिनव रंगों से मन रंग डाले
उषा में रक्ताभ से सजती
संध्या में महताब से रचती
रजनी में बन निशिगंधा सी
चिरायु चिरकाल महकती
मैं ऐसी थी
स्वछंद गगन में विचरण करती
उन्मुक्त पवन से बातें करती
चंचल नदिया सी छल-छल बहती
धवल विधु सी बन इतराती
मैं ऐसी थी
मौसम बदला जीवन बदला
काल चक्र में उलझा पगला
पल प्रति पल को जीने वाला
संकुचा बंधन में जकड़ा पगला
धानी चूड़ी से छन-छन बजती
पग में पायल जैसी बजती
करघनी को पहन कमर में
गुच्छे में चाबी सी बंधती
मैं ऐसी थी
तप्त धरा को बादल ने मोहा
पारस ने जैसे छू लिया हो लोहा
छलक पड़े फिर रस के प्याले
अभिनव रंगों से मन रंग डाले
उषा में रक्ताभ से सजती
संध्या में महताब से रचती
रजनी में बन निशिगंधा सी
चिरायु चिरकाल महकती
मैं ऐसी थी
Bhasmaasur
भस्मासुर
लिया जब केशव ने मोहिनी रूप
हुए तृप्त देवों के भूप
मन मुदित हुए बोले अविनाशी
अब हुई धरा भस्मासुर प्यासी
दिल क्रोधातुर लिए रक्त उबाल
लिए साथ आकर्षण ढाल
बांकी चितवन मोहिनी चाल
वध करने को तैयार काल
धंसे धरा हिल उठे गगन
नाचे दोनों हुए मगन
जान सुनहरा उचित सुअवसर
धरा केशव ने हाथ शीश पर
भस्म हुआ भस्मासुर तब फिर
दर्प हुया सब चकनाचूर
करने लगा क्षमा प्रार्थना
अब ना होगी मुझ से भूल
चिर पुरातन की यह गाथा
आज भी है किंतनी प्रयत्क्ष
गिरिजा वरने को लालायित
आज हुया फिर भस्मासुर
पर आयेगा ना कोई माधव
ना ही धरेगा मोहिनी रूप
रखने को स्वाभिमान सुरक्षित
बनना होगा शक्ति स्वरुप
लिया जब केशव ने मोहिनी रूप
हुए तृप्त देवों के भूप
मन मुदित हुए बोले अविनाशी
अब हुई धरा भस्मासुर प्यासी
दिल क्रोधातुर लिए रक्त उबाल
लिए साथ आकर्षण ढाल
बांकी चितवन मोहिनी चाल
वध करने को तैयार काल
धंसे धरा हिल उठे गगन
नाचे दोनों हुए मगन
जान सुनहरा उचित सुअवसर
धरा केशव ने हाथ शीश पर
भस्म हुआ भस्मासुर तब फिर
दर्प हुया सब चकनाचूर
करने लगा क्षमा प्रार्थना
अब ना होगी मुझ से भूल
चिर पुरातन की यह गाथा
आज भी है किंतनी प्रयत्क्ष
गिरिजा वरने को लालायित
आज हुया फिर भस्मासुर
पर आयेगा ना कोई माधव
ना ही धरेगा मोहिनी रूप
रखने को स्वाभिमान सुरक्षित
बनना होगा शक्ति स्वरुप
Naari
नारी
शिशु बन आँगन में क्रीडा करती
बन भगिनी सुख छाया करती
धर प्रेयसी का रूप
जब देखे चितवन से
जीवन के पतझर को भी मधुमास बनाती
धर अर्धांगिनी रूप जीवन का सार बनी
सुख दुखों के लम्हों में गलहार बनी
प्रसव वेदना झेल जब मातरत्व जना
पूरनता तब आयी जब बन पायी माँ
शिशु बन आँगन में क्रीडा करती
बन भगिनी सुख छाया करती
धर प्रेयसी का रूप
जब देखे चितवन से
जीवन के पतझर को भी मधुमास बनाती
धर अर्धांगिनी रूप जीवन का सार बनी
सुख दुखों के लम्हों में गलहार बनी
प्रसव वेदना झेल जब मातरत्व जना
पूरनता तब आयी जब बन पायी माँ
Tum
तुम
धीर गंभीर शांत जलधि से
परिचायक सुंदर संस्कृति के
अविरल श्रम का आह्वाहन करते
महानायक तुम कर्मस्थली के
चयनित करके सुशब्दों को
स्वर माधुर्य से करते सिंचन
तेजस्वी व्याखान प्रबलकर
विचलित ना हो कभी अकिंचन
गुरु , पितृ ,सखा ,भ्राता और प्रीतम
भिन्न रूपों में सजते हर दम
गरिमा , निष्ठां सयम निजता का
आत्मसात करते हो प्रतिपल
जाने कैसी बात है तुम में
बन जाते हो पल में मीत
नम्र, दृढ और प्रथम विजेता
जग में रहते बन रंजीत
धीर गंभीर शांत जलधि से
परिचायक सुंदर संस्कृति के
अविरल श्रम का आह्वाहन करते
महानायक तुम कर्मस्थली के
चयनित करके सुशब्दों को
स्वर माधुर्य से करते सिंचन
तेजस्वी व्याखान प्रबलकर
विचलित ना हो कभी अकिंचन
गुरु , पितृ ,सखा ,भ्राता और प्रीतम
भिन्न रूपों में सजते हर दम
गरिमा , निष्ठां सयम निजता का
आत्मसात करते हो प्रतिपल
जाने कैसी बात है तुम में
बन जाते हो पल में मीत
नम्र, दृढ और प्रथम विजेता
जग में रहते बन रंजीत
Sanjiti
संजिती
तेजमई, सबला , और रूपा
मंगलकारिणी गौरी स्वरूप
विमल बुधि और विमल ज्ञान से
वीणा-वादिनी की प्रतिरूपा
सिजल सुसभ्य सुसंकृत आत्मजा
जिसमे प्रतिज्ञ और गौरव उपजा
लक्ष्य साधना प्रथम ध्येय हो
बनी श्रमित तज शंका तनूजा
स्वयं-सिद्ध और मस्त अकेली
पल हर जीती करती अठ्केली
हार जीत के संघर्षों में
युक्ति पूर्ण विजयती अलबेली
बोले तो कानों में मिश्री घोले
जब हँसे ,झनकती पायल बोले
हर दिल में उपजाती प्रीती
ऐसी मेरी अध्भुत संजिती
तेजमई, सबला , और रूपा
मंगलकारिणी गौरी स्वरूप
विमल बुधि और विमल ज्ञान से
वीणा-वादिनी की प्रतिरूपा
सिजल सुसभ्य सुसंकृत आत्मजा
जिसमे प्रतिज्ञ और गौरव उपजा
लक्ष्य साधना प्रथम ध्येय हो
बनी श्रमित तज शंका तनूजा
स्वयं-सिद्ध और मस्त अकेली
पल हर जीती करती अठ्केली
हार जीत के संघर्षों में
युक्ति पूर्ण विजयती अलबेली
बोले तो कानों में मिश्री घोले
जब हँसे ,झनकती पायल बोले
हर दिल में उपजाती प्रीती
ऐसी मेरी अध्भुत संजिती
prachetas
प्रचेतस
श्यामल वरण मनोहर सुंदर
धरे शीश पर कुंचित केश
लब पर मधु मुस्कान मनोहर
जैसे माधव का मानव वेष
कलाकार की जैसी कल्पना
लक्ष्य सजाती नया हर बार
शौरज, धीरज का समयौजन
तुम्हे कराता वह स्वीकार
अवसादों के तम को हरने
आये बन कर तेजस तुम
बन पौरष , वैभव ,सुमति के स्वामी
कहलाते प्रचेतस तुम
श्यामल वरण मनोहर सुंदर
धरे शीश पर कुंचित केश
लब पर मधु मुस्कान मनोहर
जैसे माधव का मानव वेष
कलाकार की जैसी कल्पना
लक्ष्य सजाती नया हर बार
शौरज, धीरज का समयौजन
तुम्हे कराता वह स्वीकार
अवसादों के तम को हरने
आये बन कर तेजस तुम
बन पौरष , वैभव ,सुमति के स्वामी
कहलाते प्रचेतस तुम
Swishti
स्विष्टि
प्रबुद्ध , शुद्ध , दामिनी
सुशब्दों की स्वामिनी
सकल गुण सम्पना
समस्त जग भामिनी
उदारप्रिया वत्सली
सुकोलांगना कली
सत्गुनी तेजस्वनी
सर्व कामना भली
थके नहीं चले सदा
रुके नहीं बढे सदा
सफलता की कामना
हिये में धरी सदा
सृष्टि तो भरी पड़ी
स्विष्टि एक ही रही
हर कदम हर मोड़े पर
सवा लाख सी रही
प्रबुद्ध , शुद्ध , दामिनी
सुशब्दों की स्वामिनी
सकल गुण सम्पना
समस्त जग भामिनी
उदारप्रिया वत्सली
सुकोलांगना कली
सत्गुनी तेजस्वनी
सर्व कामना भली
थके नहीं चले सदा
रुके नहीं बढे सदा
सफलता की कामना
हिये में धरी सदा
सृष्टि तो भरी पड़ी
स्विष्टि एक ही रही
हर कदम हर मोड़े पर
सवा लाख सी रही
boond
बूँदें
बूँदें
तुम्हारे विचारों की
आयीं कुछ इस तरह
मेरे दिमाग के
सागर में
कि
हो गया मीठा
इस सागर का पानी
बूँदें
तुम्हारे विचारों की
आयीं कुछ इस तरह
मेरे दिमाग के
सागर में
कि
हो गया मीठा
इस सागर का पानी
shaayad kahin tum ho
शायद कहीं तुम हो
शून्य के बीच बनी यह दुनिया
जो मैं हूँ और मेरा वीराना है
यह बरसों भटका है
सूरतों के इस मेले में
घूरता डोलता रहा कि
कहीं कोई सूरत तुमसे मिलती हुई दिख जाए
यही सोच कर सब्र कर लूं कि
इस नकाब के पीछे
तुम छिप गए हो
शून्य के बीच बनी यह दुनिया
जो मैं हूँ और मेरा वीराना है
यह बरसों भटका है
सूरतों के इस मेले में
घूरता डोलता रहा कि
कहीं कोई सूरत तुमसे मिलती हुई दिख जाए
यही सोच कर सब्र कर लूं कि
इस नकाब के पीछे
तुम छिप गए हो
aadmi
आदमी
सचमुच कितना घिनौना है वह
जो अपने अस्तित्व को
जीवन की आखिरी सीमा तक
अपने भ्रष्ट भूगोल से निकाल कर
बाहर नहीं ला सका है
और अब सिर्फ कुंठा से मन बहलाता है
औरों के अस्तित्व की कल्पित इतिहास गाथा सुनाता है
और वह भी
जो जीवन भर अपने अस्तित्व का असहनीय बोझ
अपने शीश धरे ढोता रहा सारी उम्र
हमेशा दूसरों के रास्तों पर
सिर्फ अपनी बेहयाई बोता रहा
याँ फिर वह
जो सब के सामने बार बार दूध से नहाता रहे
बातों में शब्दों से अमृत छलकाता रहे
खुलेआम सत्य निष्ठ दिखता है
किन्तु जहाँ अवसर पा जाता है
झूठ को विनम्रता से सन्धि-पत्र लिखता है
सचमुच कितना घिनौना है वह
जो अपने अस्तित्व को
जीवन की आखिरी सीमा तक
अपने भ्रष्ट भूगोल से निकाल कर
बाहर नहीं ला सका है
और अब सिर्फ कुंठा से मन बहलाता है
औरों के अस्तित्व की कल्पित इतिहास गाथा सुनाता है
और वह भी
जो जीवन भर अपने अस्तित्व का असहनीय बोझ
अपने शीश धरे ढोता रहा सारी उम्र
हमेशा दूसरों के रास्तों पर
सिर्फ अपनी बेहयाई बोता रहा
याँ फिर वह
जो सब के सामने बार बार दूध से नहाता रहे
बातों में शब्दों से अमृत छलकाता रहे
खुलेआम सत्य निष्ठ दिखता है
किन्तु जहाँ अवसर पा जाता है
झूठ को विनम्रता से सन्धि-पत्र लिखता है
Maa
माँ
निश्छल भोली प्यारी माँ
लोरी गा - गा मुझे सुलाया
भूखे रह कर मुझे खिलाया
आंसू तनिक ना बहने पायें
बाहों का झूला झुलावाया
सुखों की परिभाषा माँ
निश्छल भोली प्यारी माँ
बन जीवन संबल साथ रहीं तुम
बेसुर सुर में राग बनी तुम
अवसादों के अवसर में भी
मधुचंदा मुस्कान बनी तुम
वीणा सी झंकृत रहती माँ
निश्छल भोली प्यारी माँ
जीवन धूप ममता है छाया
माँ के तप को जान ना पाया
जय - पराजय के अंतर से
जीवन में जब भी घबराया
केवल तुम्हें पुकारा माँ
निश्छल भोली प्यारी माँ
निश्छल भोली प्यारी माँ
लोरी गा - गा मुझे सुलाया
भूखे रह कर मुझे खिलाया
आंसू तनिक ना बहने पायें
बाहों का झूला झुलावाया
सुखों की परिभाषा माँ
निश्छल भोली प्यारी माँ
बन जीवन संबल साथ रहीं तुम
बेसुर सुर में राग बनी तुम
अवसादों के अवसर में भी
मधुचंदा मुस्कान बनी तुम
वीणा सी झंकृत रहती माँ
निश्छल भोली प्यारी माँ
जीवन धूप ममता है छाया
माँ के तप को जान ना पाया
जय - पराजय के अंतर से
जीवन में जब भी घबराया
केवल तुम्हें पुकारा माँ
निश्छल भोली प्यारी माँ
Ajnabi kaun
अजनबी कौन
आने वाली हर आहट में
आने का एहसास जगाते
नभ में उमड़ घुमड़ते बादल
जैसे मन में तुम छा जाते
सागर में उतरते सूरज
जैसे तुम फिर दूर छिप जाते
चंदा की किरणों जैसे
तरन ताल पर तुम बिछ जाते
पर्वत पीछे उषा काल में
अरुणिम आभा बिखरा जाते
कौन अजनबी ? मेरी हर श्वास में
तुम अपना अस्तित्व जताते
आने वाली हर आहट में
आने का एहसास जगाते
नभ में उमड़ घुमड़ते बादल
जैसे मन में तुम छा जाते
सागर में उतरते सूरज
जैसे तुम फिर दूर छिप जाते
चंदा की किरणों जैसे
तरन ताल पर तुम बिछ जाते
पर्वत पीछे उषा काल में
अरुणिम आभा बिखरा जाते
कौन अजनबी ? मेरी हर श्वास में
तुम अपना अस्तित्व जताते
Tum jo aa jaate ek baar
तुम जो आ जाते एक बार
नयनों ने जो बुने थे सपने
दिल ने भी कर लिए थे अपने
हो जाते वह सब साकार
तुम जो आ जाते एक बार
विकल वेदना अब रोती है
अश्रू शंका के बोती है
प्रशन पूछती बारम्बार
क्यों ना आये तुम एक बार
दीप आशा का जल नहीं पाए
अवनि अम्बर मिल नहीं पाए
व्यर्थ रहेगा अब श्रिंगार
तुम ना आये बस एक बार
नयनों ने जो बुने थे सपने
दिल ने भी कर लिए थे अपने
हो जाते वह सब साकार
तुम जो आ जाते एक बार
विकल वेदना अब रोती है
अश्रू शंका के बोती है
प्रशन पूछती बारम्बार
क्यों ना आये तुम एक बार
दीप आशा का जल नहीं पाए
अवनि अम्बर मिल नहीं पाए
व्यर्थ रहेगा अब श्रिंगार
तुम ना आये बस एक बार
Baarish aur aansoo
बारिश और आंसू
सब्र का बाँध जब टूट जाता है
तब भावों का बहाव भी असयमित हो जाता है
लेखनी गीली धरती पर दम तोड़ देती है
कल्पना भी थक हार साथ छोड़ देती है
ऐसे में बारिश का मौसम सुहाता है
क्योकि आँख से बहते आंसू कोई देख नहीं पाता है
सब्र का बाँध जब टूट जाता है
तब भावों का बहाव भी असयमित हो जाता है
लेखनी गीली धरती पर दम तोड़ देती है
कल्पना भी थक हार साथ छोड़ देती है
ऐसे में बारिश का मौसम सुहाता है
क्योकि आँख से बहते आंसू कोई देख नहीं पाता है
Zindagi
ज़िन्दगी
रोज़ जीती रोज़ मरती जिंदगी
इस तरहं हर पल गुज़रती ज़िन्दगी
दायरे में सच सिमट कर रह गया
झूठ के साए में पलती जिंदगी
कर्म आईने सा धुंधला ही रहा
लोभ के सांकल से जकड़ी जिंदगी
दर्द कांटे की तरह स्थिर रहा
फूल की तरह झरती जिंदगी
यह स्वयं निज भार से बोझिल हुई
एक बुढ़िया की कमर सी जिंदगी
रोज़ जीती रोज़ मरती जिंदगी
इस तरहं हर पल गुज़रती ज़िन्दगी
दायरे में सच सिमट कर रह गया
झूठ के साए में पलती जिंदगी
कर्म आईने सा धुंधला ही रहा
लोभ के सांकल से जकड़ी जिंदगी
दर्द कांटे की तरह स्थिर रहा
फूल की तरह झरती जिंदगी
यह स्वयं निज भार से बोझिल हुई
एक बुढ़िया की कमर सी जिंदगी
Kuch aur prashan
कुछ और प्रश्न !!
क्यों चंदा अम्बर में लटके , तारे सारे अधर में अटके
क्यों बादल धरती पर बरसे, स्वाति बूँद को चातक तरसे
क्यों पत्तें संग पवन के डोले , साग रवि के पंछी बोलें
क्यों भंवरा कलि के पीछे भागे , तारे सारी रात भर जागें
क्यों वृष्टि टप-टप बाणी बोलें , रवि कमलन दल आँखें खोलें
क्यों नदिया सागर से मिलने जाए ,क्यों सागर मस्त हिलोर डुलाए
क्यों पर्वत की तुहिन श्रृंखला , आसमान को छू कर आये
दूर क्षितिज में पर्वत पीछे अवनि अम्बर का मिलन सुहाए
क्यों मौसम अपने रूप बदल कर ,दे जाता देहरी पर दस्तक
क्यों छटा प्राकृत देख मनोहर, हो जाते हैं हम नत हैं हम नतमस्तक
\
क्यों चंदा अम्बर में लटके , तारे सारे अधर में अटके
क्यों बादल धरती पर बरसे, स्वाति बूँद को चातक तरसे
क्यों पत्तें संग पवन के डोले , साग रवि के पंछी बोलें
क्यों भंवरा कलि के पीछे भागे , तारे सारी रात भर जागें
क्यों वृष्टि टप-टप बाणी बोलें , रवि कमलन दल आँखें खोलें
क्यों नदिया सागर से मिलने जाए ,क्यों सागर मस्त हिलोर डुलाए
क्यों पर्वत की तुहिन श्रृंखला , आसमान को छू कर आये
दूर क्षितिज में पर्वत पीछे अवनि अम्बर का मिलन सुहाए
क्यों मौसम अपने रूप बदल कर ,दे जाता देहरी पर दस्तक
क्यों छटा प्राकृत देख मनोहर, हो जाते हैं हम नत हैं हम नतमस्तक
\
yaadon ke saaye
यादों के साए
यादो के साए ने , जब भी ली अंगडाई है
भीड़ के घेरे से एक शक्ल उभर कर आयी है .
कुछ शक्ल उभरते शिशुपन की
कुछ शक्ल उमड़ते यौवन की
कुछ शक्ल उतरते जीवन की
कुछ भोली और तुतलाती शक्लें
कुछ हंसती और इठलाती शक्लें
कुछ मात्र पहेली अनबुझ शक्लें
कुछ अनदेखी अनजानी शक्लें
कुछ जानी और पहचानी शक्लें
कुछ अपनी और बेगानी शक्लें
कुछ शक्ल कहें सुनो ज़रा रूको तुम
कुछ शक्ल कहे ज़रा और बढ़ो तुम
कुछ शक्ल सहेली संग चली बन
कुछ शकले हुई अवरुद्ध हुई गुम
शक्लों के उभरे बिम्बों से
एक शक्ल से थी मैं मुस्काई
मैंने देखा बस केवल मैं हूँ
वह शक्ल थी मेरी तन्हाई
यादो के साए ने , जब भी ली अंगडाई है
भीड़ के घेरे से एक शक्ल उभर कर आयी है .
कुछ शक्ल उभरते शिशुपन की
कुछ शक्ल उमड़ते यौवन की
कुछ शक्ल उतरते जीवन की
कुछ भोली और तुतलाती शक्लें
कुछ हंसती और इठलाती शक्लें
कुछ मात्र पहेली अनबुझ शक्लें
कुछ अनदेखी अनजानी शक्लें
कुछ जानी और पहचानी शक्लें
कुछ अपनी और बेगानी शक्लें
कुछ शक्ल कहें सुनो ज़रा रूको तुम
कुछ शक्ल कहे ज़रा और बढ़ो तुम
कुछ शक्ल सहेली संग चली बन
कुछ शकले हुई अवरुद्ध हुई गुम
शक्लों के उभरे बिम्बों से
एक शक्ल से थी मैं मुस्काई
मैंने देखा बस केवल मैं हूँ
वह शक्ल थी मेरी तन्हाई
Sankalp
संकल्प
आशायों का कैसा जमघट ?
दूर निराशा चुपचाप खड़ी है
जीवन के उठते प्रवाह में
अश्रु पी जडवत पड़ी है
राह से इसे हटाना होगा
मंजिल तक पहुंचाना होगा
रात्री काल के तिमिर गहन को
उषा काल दिखाना होगा
शांत पिपासा अपनी करने को
पनिहारिन जैसे जाए पनघट
आशाओं का कैसा जमघट ?
जीवन व्यथित बहा ही जाए
और तनिक भी सहा ना जाए
घोर निराशा के परिवेश में
संकल्प कहीं दम तोड़ ना जाए
जीवन की गोधूली वेला में
मानव जाए जैसे मरघट
आशाओं का कैसा जमघट ?
आशायों का कैसा जमघट ?
दूर निराशा चुपचाप खड़ी है
जीवन के उठते प्रवाह में
अश्रु पी जडवत पड़ी है
राह से इसे हटाना होगा
मंजिल तक पहुंचाना होगा
रात्री काल के तिमिर गहन को
उषा काल दिखाना होगा
शांत पिपासा अपनी करने को
पनिहारिन जैसे जाए पनघट
आशाओं का कैसा जमघट ?
जीवन व्यथित बहा ही जाए
और तनिक भी सहा ना जाए
घोर निराशा के परिवेश में
संकल्प कहीं दम तोड़ ना जाए
जीवन की गोधूली वेला में
मानव जाए जैसे मरघट
आशाओं का कैसा जमघट ?
Mitreta
मित्रता
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते
मित्रता का यह एहसास
मैं हूँ हमेशा तेरे आसपास
मन में भरता नया विश्वास
कितना सुंदर यह एहसास
जगतीतल के हर नर जन को
क्यों नया यह पैगाम सुनाते
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते
जीवन सहज सुखद हो जाता
सुंदर नया गीत सजाता
मन मयूर गाता मुस्काता
दुर्गम पथ मंजिल हो जाता
विश्व के सारे कोने कोने
क्यों ना यह सन्देश पहुंचाते
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते
मित्रता का यह एहसास
मैं हूँ हमेशा तेरे आसपास
मन में भरता नया विश्वास
कितना सुंदर यह एहसास
जगतीतल के हर नर जन को
क्यों नया यह पैगाम सुनाते
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते
जीवन सहज सुखद हो जाता
सुंदर नया गीत सजाता
मन मयूर गाता मुस्काता
दुर्गम पथ मंजिल हो जाता
विश्व के सारे कोने कोने
क्यों ना यह सन्देश पहुंचाते
मित्र ना क्यों हम बन कर रहते
Kinjal
किंजल के जनम दिवस पर
किंकिन मुखरित मधुकर गुंजन
मीन नयन में रचती अंजन
जब खुले केश करती अभिनन्दन
धर रूप अप्सरा देती सुख बंधन
सुर ताल आलाप बहार उचरती
मधुर राग मद मस्त विचरती
उत्श्रीन्कल सीमा में सीमित
कवि कल्पना साकार उतरती
सुकृत, सुबुध, सुप्रवीन, सुमंजुल
स्वछंद निर्झर सी बहती कल-कल
सुर नूपुरों से गुंजित प्रतिपल
ऐसी मेरी प्यारी किंजल
किंकिन मुखरित मधुकर गुंजन
मीन नयन में रचती अंजन
जब खुले केश करती अभिनन्दन
धर रूप अप्सरा देती सुख बंधन
सुर ताल आलाप बहार उचरती
मधुर राग मद मस्त विचरती
उत्श्रीन्कल सीमा में सीमित
कवि कल्पना साकार उतरती
सुकृत, सुबुध, सुप्रवीन, सुमंजुल
स्वछंद निर्झर सी बहती कल-कल
सुर नूपुरों से गुंजित प्रतिपल
ऐसी मेरी प्यारी किंजल
Hariyaali teez
पहला उत्सव यह सावन काहरियाली तीज
कहलाया हरियाली तीज
परवों की कुसुमाँवलीयों के
बो जाता है गहरे बीज
डार-डार पर पडतें झूले
सुमन सुवासित गंध से फूलें
लख प्रतिबिम्ब निरख यौवन के
कामदेव की भी छवि भूलें
खीर घेवर से सजती थाली
हरी चूड़ी की खनक निराली
हरी मेंहदी रच कर हाथों में
दे लाल-लाल हाथों से ताली
आओं मिल कर जश्न मनायं
इस उत्सव को स्वरण बनाये
प्राकित के अनुपम रंगों की
अनुपम शोभा में छिप जाएँ
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