शायद कहीं तुम हो
शून्य के बीच बनी यह दुनिया
जो मैं हूँ और मेरा वीराना है
यह बरसों भटका है
सूरतों के इस मेले में
घूरता डोलता रहा कि
कहीं कोई सूरत तुमसे मिलती हुई दिख जाए
यही सोच कर सब्र कर लूं कि
इस नकाब के पीछे
तुम छिप गए हो