नारी
शिशु बन आँगन में क्रीडा करती
बन भगिनी सुख छाया करती
धर प्रेयसी का रूप
जब देखे चितवन से
जीवन के पतझर को भी मधुमास बनाती
धर अर्धांगिनी रूप जीवन का सार बनी
सुख दुखों के लम्हों में गलहार बनी
प्रसव वेदना झेल जब मातरत्व जना
पूरनता तब आयी जब बन पायी माँ
शिशु बन आँगन में क्रीडा करती
बन भगिनी सुख छाया करती
धर प्रेयसी का रूप
जब देखे चितवन से
जीवन के पतझर को भी मधुमास बनाती
धर अर्धांगिनी रूप जीवन का सार बनी
सुख दुखों के लम्हों में गलहार बनी
प्रसव वेदना झेल जब मातरत्व जना
पूरनता तब आयी जब बन पायी माँ