शनिवार, 14 अगस्त 2010

Naari

                                नारी

शिशु बन आँगन में क्रीडा करती
  बन भगिनी सुख छाया करती
   धर प्रेयसी का रूप
       जब देखे चितवन से
   जीवन के पतझर को भी मधुमास बनाती

धर अर्धांगिनी रूप जीवन का सार बनी
      सुख दुखों के लम्हों में गलहार बनी
 प्रसव वेदना झेल जब मातरत्व जना
पूरनता तब आयी जब बन पायी माँ