रविवार, 15 अगस्त 2010

ek inch maryaadaa

एक इंच मर्यादा
गिरी के हिम शिखरों पर फैली सुनहरी धूप
नभ में उमड़ घुमड़ते रस छलकाते पानी के कूप
संध्या काल में पानी की गोद में डूबता सूरज
कुसुमावालियों पर चमकते नन्हे पानी के जलकन
जैसे तुम्हारा यह रूप
और इसे छू लेने की कामना
और तुम्हारा भी यूं व्याकुल हो
प्रकृति की तरह मुझ अम्बर में समाना
शायद हो ना पायेगा कभी संभव
क्योंकि इन के बीच फांसला है
एक इंच मर्यादा का
जिसे तोड़ने का साहस
ना तुम में है
और ना मुझ में