एक इंच मर्यादा
गिरी के हिम शिखरों पर फैली सुनहरी धूप
नभ में उमड़ घुमड़ते रस छलकाते पानी के कूप
संध्या काल में पानी की गोद में डूबता सूरज
कुसुमावालियों पर चमकते नन्हे पानी के जलकन
जैसे तुम्हारा यह रूप
और इसे छू लेने की कामना
और तुम्हारा भी यूं व्याकुल हो
प्रकृति की तरह मुझ अम्बर में समाना
शायद हो ना पायेगा कभी संभव
क्योंकि इन के बीच फांसला है
एक इंच मर्यादा का
जिसे तोड़ने का साहस
ना तुम में है
और ना मुझ में