वृष्टि
टापुर टुपुर वृष्टि पड़े
पपीहा पीयू बोल उठे
लगी सावान की यह झड़ी
क्यों पिया से दूर पड़ी
पिया गए हैं विदेश
भेजा पांति ना सन्देश
आयी मिलने की घडी
उठे तन में क्लेश
सुन दामिनी की चाप
बड़े मन में संताप
छाये घटा घनघोर
विरह का ना कोए छोर
वृष्टि की टप-टप
देती विरह की ताल
जैसे अंसुवन सींचे
राग मेघ मल्हार