गुरुवार, 19 अगस्त 2010

Jeevan ka ytharth

जीवन का यथार्थ

जी रहे हैं जो यहाँ, उन्हें मौत का इंतज़ार है
मर रहे है जो उन्हें एक श्वास की आस है
जो मिला वह व्यर्थ है, जो ना मिले वह अर्थ है
समेट लूं यह विश्व सारा इसमे क्या अनर्थ है
तू समझ इस प्राण के अभिसार को ऐ ना-समझ
पी चुके भर-भर समंदर फिर भी लकिन प्यास है
ना है अपरिचित और ना ही कुछ विस्मृत हुआ
देख अपना हाल मन स्वयं से अचंभित हुआ
पा लिया सब कुछ मगर एक फांस सी चुभती रही
जीत चुके अब जगत सारा, इस जीत  पर ही त्रास है