शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

khamoshi ki baat

ख़ामोशी
खामोश ख़ामोशी ! 
अपनी रह पर
निरंतर  चलती रही
निर्झर सरिता नद !
इसे पास बुलाते रहे
सूखे पत्ते !
इसे अपनी खडखडाहट से
निमंत्रण देते रहे
सागर अपने आगोश में
समेटने को व्याकुल रहा
चंदा अपना साथी
बनाने को आतुर रहा
पर ख़ामोशी
खामोश निगाहों से तकती रही
तन्हा ही खामोश राहों पर
चलती रही