संजिती
तेजमई, सबला , और रूपा
मंगलकारिणी गौरी स्वरूप
विमल बुधि और विमल ज्ञान से
वीणा-वादिनी की प्रतिरूपा
सिजल सुसभ्य सुसंकृत आत्मजा
जिसमे प्रतिज्ञ और गौरव उपजा
लक्ष्य साधना प्रथम ध्येय हो
बनी श्रमित तज शंका तनूजा
स्वयं-सिद्ध और मस्त अकेली
पल हर जीती करती अठ्केली
हार जीत के संघर्षों में
युक्ति पूर्ण विजयती अलबेली
बोले तो कानों में मिश्री घोले
जब हँसे ,झनकती पायल बोले
हर दिल में उपजाती प्रीती
ऐसी मेरी अध्भुत संजिती