रविवार, 15 अगस्त 2010

aansoo nahi to aur kya hai

आंसू नहीं तो और क्या है
शांत धरा के अंतस में
    भावों के बिखरे कुण्डों से
      जब पानी के चश्मे बहते हैं
           वह आंसू नहीं तो और क्या है
उत्कंठित धीर गगन से जब
     नीरद वृष्टि करता है
       पानी की नन्ही वह बूंदे
          आंसू नहीं तो और क्या है
सुडोल गिरी के अंचल से
      अंतर्मन से स्रावित हो
          जब निर्झर फूटा करते हैं
             वह आंसू नहीं तो और क्या है
मानव मन का ज्वाला मुखी
     अवसादों का लावा लेकर
        जब आँखों से बहता है
           वह आंसू नहीं तो और क्या है