आंसू नहीं तो और क्या है
शांत धरा के अंतस में
भावों के बिखरे कुण्डों से
जब पानी के चश्मे बहते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
उत्कंठित धीर गगन से जब
नीरद वृष्टि करता है
पानी की नन्ही वह बूंदे
आंसू नहीं तो और क्या है
सुडोल गिरी के अंचल से
अंतर्मन से स्रावित हो
जब निर्झर फूटा करते हैं
वह आंसू नहीं तो और क्या है
मानव मन का ज्वाला मुखी
अवसादों का लावा लेकर
जब आँखों से बहता है
वह आंसू नहीं तो और क्या है