संकल्प
आशायों का कैसा जमघट ?
दूर निराशा चुपचाप खड़ी है
जीवन के उठते प्रवाह में
अश्रु पी जडवत पड़ी है
राह से इसे हटाना होगा
मंजिल तक पहुंचाना होगा
रात्री काल के तिमिर गहन को
उषा काल दिखाना होगा
शांत पिपासा अपनी करने को
पनिहारिन जैसे जाए पनघट
आशाओं का कैसा जमघट ?
जीवन व्यथित बहा ही जाए
और तनिक भी सहा ना जाए
घोर निराशा के परिवेश में
संकल्प कहीं दम तोड़ ना जाए
जीवन की गोधूली वेला में
मानव जाए जैसे मरघट
आशाओं का कैसा जमघट ?