नीर की धारा
जैसे नीरद से बहती नीर की धारा
धो देती है धरती का कलुष सारा
वैसे ही नैनो से बहती अश्रु धारा
कर देती है ख़तम मन-मुटाव सारा
ओढ़ चुनरिया इन्द्रधनुष की सतरंगी
सज जाती है धरा दुल्हन सी नवरंगी
नव सृजन की लिए कामना करती अभिनन्दन
निश्चलता से हाथ जोड़ करती जगवंदन
हो जाता है मानस मंथन अश्रु वर्षा से
शीतल हो जाता अंतस संतप्त विधा से
धुल जाता अवसाद होता व्यक्तित्व निखार
हो जाता है मानव उधय्त करने को पुरषार्थ
(अपने जनम दिन पर स्वयं को विशेष उपहार )
जैसे नीरद से बहती नीर की धारा
धो देती है धरती का कलुष सारा
वैसे ही नैनो से बहती अश्रु धारा
कर देती है ख़तम मन-मुटाव सारा
ओढ़ चुनरिया इन्द्रधनुष की सतरंगी
सज जाती है धरा दुल्हन सी नवरंगी
नव सृजन की लिए कामना करती अभिनन्दन
निश्चलता से हाथ जोड़ करती जगवंदन
हो जाता है मानस मंथन अश्रु वर्षा से
शीतल हो जाता अंतस संतप्त विधा से
धुल जाता अवसाद होता व्यक्तित्व निखार
हो जाता है मानव उधय्त करने को पुरषार्थ
(अपने जनम दिन पर स्वयं को विशेष उपहार )