अजनबी कौन
आने वाली हर आहट में
आने का एहसास जगाते
नभ में उमड़ घुमड़ते बादल
जैसे मन में तुम छा जाते
सागर में उतरते सूरज
जैसे तुम फिर दूर छिप जाते
चंदा की किरणों जैसे
तरन ताल पर तुम बिछ जाते
पर्वत पीछे उषा काल में
अरुणिम आभा बिखरा जाते
कौन अजनबी ? मेरी हर श्वास में
तुम अपना अस्तित्व जताते